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शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2025

राष्ट्रीय एकता दिवस: सरदार वल्लभभाई पटेल जयंती


भारत देश के इतिहासकार कुछ व्यक्तित्वों को अपनी पुस्तकों में प्रमुखता से स्थान न दे पाए । उन व्यक्तित्वों में से एक प्रमुख व्यक्तित्व है,सरदार वल्लभभाई पटेल का ।जो भारत की एकता  और अखंडता को , हर एक भारतीय के अधिकार को , भारत को विश्व में एक शक्तिशाली संवैधानिक राष्ट्र के रूप में स्थापित कर गए। अपने नाम और पद से अधिक उन्होंने राष्ट्रीय एकता को महत्व दिया ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ 31 अक्टूबर उनकी जयंती के उपलक्ष्य में घोषित है। उनको श्रद्धांजलि देते हुए यह लेख प्रस्तुत है।


सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 18 75 नडियाद गुजरात में हुआ ।पिता झावेर भाई माँ लाडबादेवी थीं। प्रारंभिक शिक्षा करमसद और नडियाद में की ।कानूनी पढ़ाई स्व-अध्ययन से की ।1910 में लंदन के मिडिल टेंपल से केवल 30 महीने में ‘बैरिस्टर एट लाॅ’की पढ़ाई पूरी कर कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। अहमदाबाद के सफल वकील के रूप में पहचाने जाने लगे। बाद में स्वतंत्रता सेनानी व रियासतों के विलय में अग्रणी भूमिका निभाई। उन्हें बारडोली महिलाओं द्वारा ‘सरदार’, विलय कर्ता के रूप में ‘लौह पुरुष’ तथा ‘भारत के बिस्मार्क’ के रूप में जाना जाता है। उनकी मृत्यु 15 दिसंबर 1950 में हुई।


 भारत में उनके अभूतपूर्व योगदान 

1-भारतीय राष्ट्रीय एकता शिल्पकार-

 1947 की आजादी के समय भारत में 565 से अधिक देशी रियासतें थीं ,जिन्हें सरदार पटेल ने ‘एक भारत:श्रेष्ठ भारत’ के दृष्टिकोण को मूलाधार मानकर ,शक्ति को नीति ,दूरदर्शिता और आवश्यकता अनुसार दबाव का उपयोग करके इनमें से लगभग सभी रियासतों को भारतीय संघ में विलय पत्र (Instrument of Accession)के माध्यम से विलय करने का असंभव कार्य संभव किया ।भारत के शिल्पकार ने भारत के लौह पुरुष की उपाधि देना सर्वथा उचित था क्योंकि उनके इसी कृत्य ने भारत के संवैधानिक ढांचे को लोहे जैसी मजबूती प्रदान की।जूनागढ़ ,हैदराबाद ,जम्मू और कश्मीर विलय की चुनौतियों को उन्होंने असाधारण राजनीतिक कूटनीति से हल किया ।जूनागढ़ का विलय नवाब के पाकिस्तान भागने के बाद 99% जनमत संग्रह से ,हैदराबाद का ‘पोलो ऑपरेशन’ से तथा जम्मू और कश्मीर का कव्बाइलियों से सुरक्षा की सैन्य सहायता देकर किया ।

2-अखिल भारतीय सेवाओं में योगदान -

भारतीय सिविल सेवाओं के जनक के रूप में पहचाने जाने वाले सरदार पटेल ने ब्रिटिश युग की इंडियन सिविल सर्विस (ICS) को बदलकर इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस(IAS) में तथा पुलिस सेवा को भी पुनर्गठित करके उन्हें ‘स्टील फ्रेम’ कहा ।उन्होंने संघ और राज्यों के बीच में समन्वय स्थापित करने के लिए ऐसी अखिल भारतीय सेवा की परिकल्पना की जिसके अधिकारी केंद्र सरकार द्वारा चुने राज्यों में काम करें। इस फ्रेम को बनाने के लिए उनका तर्क तथा देश को तोड़ने की कोशिश का मुकाबला करने और राज्यों के कल्याण संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निष्पक्ष नौकरशाही (Bureaucracy)अनिवार्य है

3- बारडोली आंदोलन -

ब्रिटिश मुंबई प्रेसिडेंसी सरकार द्वारा भू राजस्व की दरों में अन्याय पूर्ण वृद्धि   की गई,जो 22% और कुछ स्थानों पर 30% तक थी। 1925 की बाढ़ और अकाल ने किसानों को बदहाल कर रखा था। इस अन्याय पूर्ण राजस्व  वृद्धि ने उनकी कमर ही तोड़ दी थी ।1928 में सरदार पटेल के नेतृत्व में गुजरात में बारडोली के किसानों से सत्याग्रह आंदोलन किया जिसमें कर देने से इनकार किया। सरकार द्वारा भूमि पशु आदि जब्त किए जाने लगे।  किसान स्थिर रहे। महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। अंततः ‘मैक्सवेल बूमफील्ड आयोग’ की जाँच के परिणामस्वरुप लगान वृद्धि कम करके 6.03 प्रतिशत हुई ।यह सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में किसानों के संघर्षों की बड़ी जीत थी ,जिसने यह साबित किया कि अहिंसक तरीके से भी औपनिवेशिक सरकार की नीतियों का सफलतापूर्वक विरोध किया जा सकता है ।

4-भारत के उच्च उच्चतम पद का बलिदान-

 1946 में कांग्रेस अध्यक्ष (जो अंतरिम सरकार का प्रमुख यानी प्रधानमंत्री बनने वाला था) के चुनाव के लिए 15 में से 12 प्रांतीय कांग्रेस समितियों द्वारा सरदार पटेल का नाम प्रस्तावित किया गया था।  गांधी जी के प्रति सम्मान,जवाहरलाल नेहरू को इस पद को देने की इच्छा तथा राष्ट्रीय एकता की जरूरत (यदि जवाहरलाल नेहरू को नेतृत्व नहीं दिया,कांग्रेस का विभाजन हो सकता है) को समझते हुए उन्होंने इस दावेदारी से अपना नाम वापस देते हुए पद का बलिदान किया ।उप प्रधानमंत्री और पहले रक्षा मंत्री के रूप में देशी रियासतों के एकीकरण में अपनी पूरी ऊर्जा डाल दी।

राष्ट्रीय सम्मान 

1-भारत रत्न (मरणोपरांत )1991 

2-राष्ट्रीय एकता दिवस- घोषणा वर्ष 2014 

3-स्टेचू ऑफ़ यूनिटी -उद्घाटन 2018 -केवड़िया नर्मदा नदी के तट गुजरात पर दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा के रूप में स्थापित भौतिक स्मारक ,जिसकी ऊँचाई 182 मीटर 597 फीट है। यह इनकी लौह संकल्प शक्ति तथा देश के एकीकरण के प्रति उनकी समर्पण का प्रतीक है।


भारत के जिस लौह पुरुष ने भारत के संविधान को लोहे जैसे शक्ति प्रदान की है। एकीकरण द्वारा इसे अखंडता प्रदान की है, उस व्यक्तित्व को देश उनकी जयंती के शुभ अवसर पर कृतज्ञतापूर्वक नमन करता है।


लेख रचनाकार

पल्लवी गोयल

(चित्र साभार गूगल)




शुक्रवार, 15 अगस्त 2025

उड़ान

 



उन्यासीवें(79)स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर की सभी को शुभकामनाएँ 💐और नयी पीढ़ी को शुभ संदेश।😍

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

नन्हे मुन्ने राही तुम हो ,

नई मुस्कान ,उड़ान भरो।

जीवन को नियमों से भरकर,

स्व का जीवन दान करो।

संकल्प नया हो ,चाह नई हो।

देश में जीवन प्राण भरो

मित्र बनाओ ,पूरी दुनिया को

अमन चैन का राज करो।

राष्ट्र सुखी हो और विश्व,

ऐसे सबके दुःख हरो।

नन्हे-मुन्ने राही तुम हो,

नई मुस्कान, उड़ान भरो।

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

पल्लवी गोयल

शनिवार, 1 जुलाई 2023

जन्म

  



खुद को समाप्त करना पड़ता है

किसी को बनाने के लिए।


बीज  स्वयं को समाप्त कर 

एक पौधे को जन्म देता है।


अंडा स्वयं को तोड़ कर 

एक शिशु को जन्म देता है।

                  

वाष्प और हिम दोनों ही 

 पानी को जन्म देते हैं।

 

बालिका स्वयं को समाप्त कर

संतान के लिए माँ को जन्म देती है।

                           पल्लवी गोयल

शनिवार, 31 दिसंबर 2022

31 दिसंबर की तारीख

  


31 jदिसम्बर  की तारीख में...

एक खास  ही बात है 

यादों की बारात हैं।

जज़्बातों के  एहसास हैं।

बीते कदमों की चाप हैं।

खुशियों के सैलाब हैं।

आँसुओं की गिनती है

 मुस्कानों के विश्वास हैं।


 इसके बढ़ते कदमों पर...

अरमान हैं , जिज्ञासा है।

आशा है, पिपासा है।

उत्साह है  , संकल्प है।


  चलती  यह सखी  एक जनवरी 

 से हाथ मिलाती है

अपने मनोभावों की गठरी

उसी के हाथ सौंप आती है।


दो सखियों के  इस मिलन  की आपको शुभकामनाएँ।😍

पल्लवी गोयल 

चित्र साभार गूगल से

सोमवार, 25 जनवरी 2021

पिंजरा

सिर झुकाए, हाथ बाँधे,
 मुँह से कुछ ना बोलता।

                                          आंखों के कुछ रोष से ,

                                         दिमाग से कुछ  तोलता।

       किस्मत लेख बदलने को, 

कदमों पर है डोलता।

                         घुटी चीखें बदली हैं ,

                                अब रक्त में कुछ खौलता।

सलाखों में जकड़ा हुआ, 

सदियों से राहें जोहता

                              काज जो उसने किया ,

                            आज सिर चढ़ डोलता

अपराध इसको तुम कहो ,

वह बंद पिंजरा खोलता ।

पल्लवी गोयल 

चित्र साभार गूगल

गणतंत्र दिवस


वीर शहीदों की कुर्बानी 
याद रहे चिरकाल तक।
तिरंगे की अमर कहानी 
गूँजे हर एक माथ तक।

आज राष्ट्रगान गूँजा है
भविष्य बस  यशगान हो।
तिरंगे की तीन छटा -सा
 समृद्धि ,प्रीति ,सम्मान हो।

 गणतंत्र की हर सुबह में  
एक संदेशा याद रहे।
कल भी पैदा होंगे भेदी 
वह निर्बल असहाय रहें।

शीश तना खड़ा हो ऊपर 
मानवता को झुक प्रणाम हो।
झंडे के समक्ष माथे पर हाथ
 हर सैनिक को सलाम हो।


देश व विदेश में बसे हर एक भारतवासी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

सोमवार, 14 सितंबर 2020

सखी हिंदी

 

हिंदी तुमसे प्यार क्यों इतना ,

सहज निभाना तुम्हें  क्यो इतना।


जब भी प्रश्न किया खुद से

उत्तर तुरंत पाया तुमसे।


सपने की हर उड़ान में  

 सच्ची सखी तू हर इक में।


अंतर्मन जो करे पुकार 

तू दौड़ी आती हर बार।


बाबा की बतकही में तू ही

माता की  झिड़की में तू ही


कटु या भोले अपशब्दों की 

मइया  तू ही  है इन की ।


मित्र चुहल का भार उठाती

मीत के खत का गाना गाती।


राखी का हर प्रण तुमसे 

सहचरी कंगना में ,तू ही हँसे ।


सखी ,  मीत, भार्या, अनुजा

मात ,तात  न  कोई तेरे बिना।


अब समझी  प्यार क्यों इतना 

सहज निभाना तुम्हें  क्यो इतना।


हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर  हृदय से शुभकामनाएँ ।

सोमवार, 18 मई 2020

कुछ नहीं ...बस..



ये कलम भी न बस
अंगद पाँव हो गई है।

न फटी बिवाई की 
गहराई में जाकर 
झाँकने को तैयार है।

न रेल की पटरी पर 
बिछी रोटियों को 
चुनने के आतुर है।

न मदिरालय की 
लंबी  पंक्तियाँ को
गिनने को बेकरार है।

न तरबतर  बेटे पर 
लदी माँ के आँसू 
लोकने का प्यार है।

न घेरे में  पादुका रखे
साथ बैठे की सोचती 
कि बुद्धि की मार है।

बस सारे दिन सुस्त सी
पड़ती है , पढ़ती है,
सुनती है ,कहती है।


मुझे  चलाना तब जब
इनमें से  तुम्हें एक भी
बदलने से  सरोकार  है।

पल्लवी गोयल 
चित्र गूगल से साभार

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2020

जीवन अपने सम..


जीवन के इस कठिन सफर में,
चलते जाना मुश्किल जग में।
राह में कई बवंडर होंगे ,
कई शांत से झोंके भी।
कई राह के रोड़े होंगे ,
कई मील के पत्थर भी।
कई संविधान होंगे हम पर,
कई नियम हल्के-फुल्के से।
सोच हमारी अपनी है,
 क्या ले क्या ठुकरा दे हम।
हर एक बहती सरिता में,
 न कोई समरस धारा है।
क्या बोएँ, उगाएँ ,काटे खाएँ
 यह अधिकार हमारा है।
आओ इस जटिल गुत्थी को ,
खुद से खुद सुलझा ले हम।
जीवन को अपने सम ही
 जी कर हम दिखला दे बस।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार 

गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

कृषक और सैनिक




1
कृषक महान मैं इस धरती का,
 मुझको हैं कुछ कर्ज चुकाने ।

प्रपात,सरिता,सरोवर में बहता, 
जल ले उसके चरण धुलाने ।

वायु प्रफुल्लित श्वसनिकाओं में
भरकर, हल-बैल से खेत सजाने।

जिस मिट्टी से बीज बना मैं,
उस पर हैं  कुछ बीज लगाने ।

जिस अन्न-जल ने सींचा मुझको ,
इस पर  है कुछ फसल उगानी।

2
बालक बन जन्म लिया
  अब सैनिक बन बैठा हूँ ।

 तेरी रक्षा के खातिर सीमा
पर, जलता ,ऐंठा बैठा हूँ ।

 शर  वक्ष  छलनी करे तुम्हारा
 धो बैठेगा वह  हाथ तभी ।

एक गोली आई इधर हमारे
तुरंत होंगे सर्वनाश तभी।

 तेरा नीर बहता मेरी रगों में
टपकेगा  वह नीर सा ही।

अगर किसी ने तीक्ष्ण नयन कर,
बढ़ाया कलुषित हाथ कभी ।

चाहे कृषक हो या वीर सिपाही
हूँ  मैं  भारतीय,बस संतान तेरी।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार 

शनिवार, 14 दिसंबर 2019

कहे का कहा


जब कहा हुआ
कहा जाएगा
और फिर
कहा जाएगा
और तब तक
के लिए छोड़
दिया जाएगा
कि फिर
कहा जाए।

सुनने  वाला
कोई नहीं
सब कहने वाले
कहे का मंज़र
बवंडर बनकर
लहराएगा
आसमान की ओर
उड़ता निकल
जाएगा।

फिर से कहने
वाला  वही क्रिया 
दोहराएगा
जो कहने वाला
था उसने  कहा...
सुना नहीं
जो सुनने वाला था
वह भी कह ही
रहा था।

कहने वाले के
कहे का कहा
उनके लिए
कहा ही रह
जाएगा।

@पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार

मंगलवार, 5 नवंबर 2019

एक और एक ग्यारह


वैसे तो
एक और एक
मिल कर
दो बनता है ।
पर दो
की कोई
कहाँ सुनता है
आवाज बड़ी हो
तो दूर तक
जाती है ...
वरना छोटी तो
बस मक्खी
भिनभिनाती है ।

बेहतर है
 एक से एक
को मिलाओ
जोड़ा ग्यारह का
बनाओ ।
संख्या दो जुड़ेगी
 केवल एक मिलेगी
पर ताकत
 उसमें
दस और एक
की होगी ।

मर्जी तुम्हारी है
फायदा नुकसान
तुम्हारा है
किसे छोड़ो
किसे अपनाओ
फैसला भी
तुम्हारा है
 पर
एक को एक से
 गले लगाओ ।
एक को एक से
दूर
कदापि न भगाओ।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार 

बुधवार, 30 अक्टूबर 2019

प्रजातंत्र के रक्षक हो तुम

प्रजातंत्र है जिम्मेदारी 
जन जन इसका है अधिकारी 
अधिकार जो तुमको है पाना
कुछ कर्म भी करते जाना 
समुद्र की गहरी हलचल में
हंस बनो इक मोती चुनो
चुनना तुम्हारा कर्म -धर्म है
तुम प्रजातंत्र के रक्षक हो।
पल्लवी गोयल 

सोमवार, 12 अगस्त 2019

हे हिंद वासियों! कश्मीर वासियों!


हे हिंद वासियों !कश्मीरी बंधुओं!
 तुम भारत का सिरमौर हो
सत्तर वर्षों की कड़ी तपस्या
 के तुम जीवित धैर्य  हो।

 सीमा पर होने के
तुमने असंख्य वार सहे हैं
अदृश्य रेखा के इस पार सही
हमने भी सब दुख देखे हैं।

अब जो मिटी है वह अदृश्य अभी
उसको दिल से भी हटा देना
हो बिछड़े हुए तुम बरसों के
तुम भी बाहें फैला देना

 बोए हुए इस पराएपन ने
बहुत से त्रास रचे हैं
न पराए तुम हो, ना पराए हम
हाथ मिलाकर है चलना

 जो तलवार उठेगी तुमपर
ढाल होगा यह गात भी
 भ्राता, बंधु अरे सहोदर
 दुख पर मरहम हाथ भी।

हाथ से हाथ मिला कर चलना
लिखना है इतिहास अभी।
जंग हुई तो साथ रहेंगे
अमन हुआ तो सुख  भोगेंगे

ईद ,दिवाली ,स्वतंत्र, गणतंत्र
त्योहार साथ मनाएंगे
राष्ट्र मान तिरंगे तले
राष्ट्रगान सब गाएंगे

 संविधान है एक हमारा
 अधिकार हमारे समान है
भारत की हर अंतिम सीमा
पर हम सबका अधिकार है!!!

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार 

रविवार, 11 अगस्त 2019

हमराही


ज़िंदगी  हो ,साथी हों
साथ  जीने की
बेताबी हो
 चाहे रास्ता हो
ना मंज़िल
चलने का जज़्बा
रास्ता  दिखाए
उस रास्ते  को ही
 मंजिल समझ
हर पल को
जी लीजिए
रास्ते के इस
सफ़र में
हमराही की सुगंध
का लुत्फ़ लीजिए ।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार 

शनिवार, 10 अगस्त 2019

ख्वाहिशों का क्षितिज


जिंदगी में ख्वाहिशों का कोई अंत नहीं।
एक पूरी करते दूसरी जन्म लेती वहीं।

पशोपेश में हूं कि चुनूँ वह कि यही।
होड़ में तो लगती सभी दूसरे पर चढ़ो

दिल की सुनो तो रास्ता पुराना वही।
दिमाग की हर इक बार एक राह नयी।

हृदय गहराई में उतरकर चुन लाता कोई।
मन आकाश के तारे चुन-चुन लाता कई।

अब तू ही बता क्या कोई रास्ता है ऐसा भी।
जो क्षितिज को छूकर आ सकता कभी।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार 

मंगलवार, 25 जून 2019

मैं बीज




कल जो मैं सोया

बंद कमरा देख बहुत रोया ।

आंखें ना खुलती थी

 गर्मी भी कुछ भिगोती थी ।

हवा की थी आस

 लगती थी बहुत प्यास ।

ना आवाज़ ना शोर

थी शांति चहुँ ओर ।

हाथ कहीं बंधे से थे

पैर भी खुलते न थे ।

थी बहुत निराशा

मिली ना कोई आशा।

 एक कतरा अमृत का

कुछ जीवन सा दे गया

आंखें तो खुली नहीं

पर खुश्क लबों को

  भिगो गया।

 लंबे समय की

खुश्की का  साथ

प्रतिदिन रहती बस

उस क्षण  की याद

 उसी बंदीगृह में  सुनी

 एक धीमी सी आवाज़

कुछ तो था उसमें  जो जगा

मुझमें नये जीवन का अहसास

फिर एक अविरल धारा बही

मैं झारोझार नहाया

हाथ कुछ खुलने लगे थे

पैर ज़मीं में धंसने लगे थे

एक स्पर्श से मैं  चौंक  गया

किसी  ने मेरे तन को छुआ

मैं मदमस्त  लहराने  लगा

मेरा मन गीत गाने लगा

गुनगुनाहट ने दी  शक्ति नयी

जोर लगाया तभी  आँखें खुली

चौंधियाई आँखें न

 सह पाईं यह वार

सामने  था अनोखा

  सुंदर सपनीला  संसार।

काश कि उस अँधेरे में

मैं यह समझ पाता

हर दुख के बाद

 सुख अवश्य आता।

सुख का प्रकाश

सबको है लुभाता।

पर सच यह है -

सुख- दुख का परचम

सिक्कों के दो

पहलू  सा लहराता।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार

गुरुवार, 30 मई 2019

महँगाई






दादी जी की  याद जो आई
वो चमकदार  आँखें  लहराई

बोल जुबां पर फिरते थे पर
सपने आँखों में  तिरते थे
भविष्य नहीं  ,वे यादें  थीं ,
जो बात बात पर निकलती थी ।

कभी  जलेबी  एक पैसे की
दोना  भर आ जाती थी ।
कभी सोलह आने में सोलह सेर
देशी घी की खुशबू घर गमकाती थी।

सोना चांदी का एक तोला
बस दस रुपए तुल जाता था ।
शानदार हवेली तीन मंजिली
बस तीस हजार में मिलती थी ।

एक पैसे का जीभ जरऊँआ
 पाचक खाते सब सुनती थी।
 अपनी भी कुछ बुरी नहीं थी
टॉफी पैसे में इक मिलती थी।

एक रूपये का रिक्शा तीन
 चौराहे पार कराता था ।
 ग्यारह  नंबर की बस पर जाओ
वह भी गुल्लक में जाता था।

 सरकारी स्कूल में जाकर
फीस माफ सी हो जाती थी।
 ग्यारह चवन्नियों के बदले
टीचर पूरे माह  पढ़ाती थी।

 रैपिडेक्स को पढ़- पढ़ कर
अंग्रेजी वॉकिंग टॉकिंग होती थी।
इंग्लिश मीडियम स्कूलों में बस
पुस्तक इंग्लिश की होती थी ।

बेटी जब पढ़ने को आई
इंग्लिश विद्या ही रास आई ।
कुछ रुपयों से ज्यादा रुपए
खर्च कर एडमिशन करा दिया ।

भांति-भांति पुस्तकों के संग
 कलर ,फेवीकोल भी आ गया ।
बस्ता ब्रांड का चाहिए था
 बोतल ,टिफिन और बॉक्स भी।

 रिक्शे का अब समय नहीं था
बस का हॉर्न बजता था ।
नये पुराने जमाने के बीच में
स्ट्रेंजर्स का खतरा बढ़ता था ।

कभी देखती फीस की पर्ची
कभी विद्यालय की इमारत नयी।
जो बतलाते थे आज की
महंगाई का ग्राफ सही ।

लक्ष्मी सरस्वती ने की थी
अब एक साठ-गांठ नई
एक बिना दूजी को पाना
थी बीते काल की बात हुई।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार 

शनिवार, 25 मई 2019

मैं हूँ बड़ा रुपैया भैया


मैं हूँ बड़ा रुपैया भैया,
सबसे बड़ा रुपैया।
दौड़ के पीछे भागो मेरे,
हाथ कभी ना आऊँ तेरे।
लालच ,झूठ का मेरा संसार,
मृगतृष्णा का मैं जंजाल।
मैं आगे ,सब दुनिया पीछे ।
मैं नहीं ,सब रीते -रीते ।
महिमा से साथी बन जाते,
साथी भी दुश्मनी निभाते।
अजब गजब मेरा संसार,
चलो फिर मिलाते हाथ।
बढ़ाया हाथ ,तेरा मिला नहीं,
दो कदम बढ़ा, पर जुड़ा नहीं।
फिर कदम बढ़ा दो, हाथ सहित,
हाथ बढ़ा और पकड़ सही।
फिर कर एक कोशिश नयी,
कोशिश से हर बात बनी।
पास तेरे बस यही खड़ा हूं,
तेरे कर्मों से जुड़ा हुआ हूं।
कपट ,तृष्णा, छल ,धोखेबाजी,
कब्र खुदेगी यहीं तुम्हारी।
दया धर्म का जो तू व्यापारी,
तुझे जरूरत नहीं हमारी।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार





बुधवार, 8 मई 2019

कर्मयोगी




ऐ बालक !तू नजर गड़ाए ,
क्यों तकता धरती की ओर ।

परतों के भीतर क्या दिखता,
तुझको असीम सुखों का छोर।

हाथ फिराता ,हाथ डुलाता,
हैर-फेर क्या ढूंढ रहा तू ।

क्या बन के फिर से शिशु- सा
पय स्रोतों की आस लिए तू।

फटी बिवाई मुँह खोलकर,
दिखती कुछ निगलने को तत्पर।

खुश्क लबों पर जीभ फिराता,
छुद्र आस पर डटा हुआ तू।

तप्त धरा है, छाया नहीं जरा है
रत दिखता तू श्रम की ओर ।

चुनता जाता है जो तू अनवरत,
लोहा, कागज, तांबा, कासा।

स्वेद कणों की कालिमा से उन्हें,
नहलाता शुद्ध करता जाता।

तेरी फटी कचरे की झोली,
लगती सुनार की भरी तिजोरी।

तू योगी है या भोगी है
कर्म रेख की पकड़े डोर।
पल्लवी गोयल 
चित्र गूगल से साभार