7607529597598172 हिंदी पल्लवी: कृषक
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गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

कृषक और सैनिक




1
कृषक महान मैं इस धरती का,
 मुझको हैं कुछ कर्ज चुकाने ।

प्रपात,सरिता,सरोवर में बहता, 
जल ले उसके चरण धुलाने ।

वायु प्रफुल्लित श्वसनिकाओं में
भरकर, हल-बैल से खेत सजाने।

जिस मिट्टी से बीज बना मैं,
उस पर हैं  कुछ बीज लगाने ।

जिस अन्न-जल ने सींचा मुझको ,
इस पर  है कुछ फसल उगानी।

2
बालक बन जन्म लिया
  अब सैनिक बन बैठा हूँ ।

 तेरी रक्षा के खातिर सीमा
पर, जलता ,ऐंठा बैठा हूँ ।

 शर  वक्ष  छलनी करे तुम्हारा
 धो बैठेगा वह  हाथ तभी ।

एक गोली आई इधर हमारे
तुरंत होंगे सर्वनाश तभी।

 तेरा नीर बहता मेरी रगों में
टपकेगा  वह नीर सा ही।

अगर किसी ने तीक्ष्ण नयन कर,
बढ़ाया कलुषित हाथ कभी ।

चाहे कृषक हो या वीर सिपाही
हूँ  मैं  भारतीय,बस संतान तेरी।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार