7607529597598172 हिंदी पल्लवी: नवंबर 2015

शनिवार, 7 नवंबर 2015

चिराग तले अँधेरा


धूम धूम जलती 
रोशनी के तले 
प्रकाशित थे 
कुछ बुझते चेहरे

जगमगाती उजली
 रोशनी  के बीच
बुझते बुझते से 
दो दीयों  के जोड़े

खुशियाँ  बिखराते,
 हाथ नचाते  ,
झूम कर गाते 
समूहों के बीच थे
 कुछ खोजते चेहरे 

विज्ञापित साड़ियों ,
महकती खुशियों , 
विदेशी टाइयों 
के बीच थी 
कुछ लुगड़ियां 
मुसी धोतियाँ 
और निक्करें 

छोटे सवार थे घोड़ी पर 
उनपर सवार सेहरा था 
छोटा कहार नंगे पाँव 
उस पर सवार बक्सा था 

सेहरा और चेहरा क्या 
घोड़ी के पाँव तले उजियारा था 
बक्से के ऊपर उजाला 
तले भविष्य अँधेरा , धुंधला था

कुछ सवाल पूछता सा 
लगता था ज़माने से 
न शिकायत थी चेहरे 
पर, न बल माथे पर

उम्र है दोनों की एक 
पर क्या गुनाह मेरा था  
                             पल्लवी गोयल 



  

विद्यालय


भौरों की गुंजार ही ,
बगिया का संगीत है 
रास्ते पर बिखरा मकरंद
यही मेरी धन संपत्ति  है   

रविवार, 1 नवंबर 2015

विचार





विचारों  की भी अजब कहानी होती है
विचारों  की दुनिया कुछ पहचानी
कुछ अनजानी सी होती है

कभी पहुंचते परी लोक तो
कभी पहुंचते प्रिय आँचल में
कभी चन्द्र की ऊँचाई पर
कभी पाताल  की गहराई तक

चंद्रयान यात्री से पहले
विचार वहाँ  पहुंचा था
विचार ही है  वह गोताखोर
जो आत्मसागर में डुबकी लगाता

विचारों  ने ही निराकार 
को साकार बनाया 
इसी  छाते ने सद्गुण  के पास
और दुर्गुण  से दूर रहना सिखाया 

विचार ही हैं जिन्होंने 
रोगी को यमराज तक 
डॉक्टर को आँत तक 
कवि को चाँद तक 

नर को शक्ति तक
सैनिक  को मैदान तक 
जेहादी को आत्मदाह तक  
पहुंचने  का रास्ता दिखाया 

विचार मंथन ही
दुर्गुणों की छाछ  दूर फेंक
इन्सान को इन्सान   बनाता   
विचार  ही दिन के उजाले 
रात के अँधेरे का अंतर बताता  

इसकी ऊर्जा क्या न
पहुंची छात्र तक
जिसकी तेजी ने पहुंचाया 
रॉकेट यान को आकाश तक

ये ही तो थे  
जिसने समय समय पर  
तेरा साथ दिया 
वे यही है 
जिन्होंने तुझे पथभ्रष्ट  किया  

तू अपने आप को क्यों 
दोष देता है 
ये गुरु हस्त तले 
और संगत में पलता  है 
                                      पल्लवी गोयल