आंखों के कुछ रोष से ,
दिमाग से कुछ तोलता।
किस्मत लेख बदलने को,
कदमों पर है डोलता।
घुटी चीखें बदली हैं ,
अब रक्त में कुछ खौलता।
सलाखों में जकड़ा हुआ,
सदियों से राहें जोहता
काज जो उसने किया ,
आज सिर चढ़ डोलता
अपराध इसको तुम कहो ,
वह बंद पिंजरा खोलता ।
पल्लवी गोयल
चित्र साभार गूगल
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