कल जो मैं सोया
बंद कमरा देख बहुत रोया ।
आंखें ना खुलती थी
गर्मी भी कुछ भिगोती थी ।
हवा की थी आस
लगती थी बहुत प्यास ।
ना आवाज़ ना शोर
थी शांति चहुँ ओर ।
हाथ कहीं बंधे से थे
पैर भी खुलते न थे ।
थी बहुत निराशा
मिली ना कोई आशा।
एक कतरा अमृत का
कुछ जीवन सा दे गया
आंखें तो खुली नहीं
पर खुश्क लबों को
भिगो गया।
लंबे समय की
खुश्की का साथ
प्रतिदिन रहती बस
उस क्षण की याद
उसी बंदीगृह में सुनी
एक धीमी सी आवाज़
कुछ तो था उसमें जो जगा
मुझमें नये जीवन का अहसास
फिर एक अविरल धारा बही
मैं झारोझार नहाया
हाथ कुछ खुलने लगे थे
पैर ज़मीं में धंसने लगे थे
एक स्पर्श से मैं चौंक गया
किसी ने मेरे तन को छुआ
मैं मदमस्त लहराने लगा
मेरा मन गीत गाने लगा
गुनगुनाहट ने दी शक्ति नयी
जोर लगाया तभी आँखें खुली
चौंधियाई आँखें न
सह पाईं यह वार
सामने था अनोखा
सुंदर सपनीला संसार।
काश कि उस अँधेरे में
मैं यह समझ पाता
हर दुख के बाद
सुख अवश्य आता।
सुख का प्रकाश
सबको है लुभाता।
पर सच यह है -
सुख- दुख का परचम
सिक्कों के दो
पहलू सा लहराता।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार
सादर नमस्कार!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार जून 27, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
रचना को सम्मान देने के लिए हृदय से आभार मीना जी ।
हटाएंसादर ।
अंतर्मन को स्पर्श करती बेहतरीन रचना 👌
जवाब देंहटाएंसादर
रचना पसंद करने के लिए धन्यवाद अनीता जी ।
हटाएंसादर ।
सुन्दर ...बीज सुप्तावस्था में होता है हमारे अवचेतन मन की तरह . जाग्रति में ही हरअनुभूति होती है
जवाब देंहटाएंआदरणीया,
हटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है ।रचना पर इस सुंदर अभिव्यक्ति के लिए आभार ।
सादर ।
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद अनुराधा जी ।
हटाएंसादर।
बहुत बहुत सुंदर प्रस्तुति। प्यारी रचना एक बीज जब अंकुर बन खिल गया।
जवाब देंहटाएंवाह
आदरणीय कुसुम जी ,
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।
सादर ।
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना .प्रकाशन के लिए धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंहिन्दीकुंज,हिंदी वेबसाइट/लिटरेरी वेब पत्रिका
धन्यवाद महोदय ।
हटाएंऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!
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