7607529597598172 हिंदी पल्लवी: मैं बीज

मंगलवार, 25 जून 2019

मैं बीज




कल जो मैं सोया

बंद कमरा देख बहुत रोया ।

आंखें ना खुलती थी

 गर्मी भी कुछ भिगोती थी ।

हवा की थी आस

 लगती थी बहुत प्यास ।

ना आवाज़ ना शोर

थी शांति चहुँ ओर ।

हाथ कहीं बंधे से थे

पैर भी खुलते न थे ।

थी बहुत निराशा

मिली ना कोई आशा।

 एक कतरा अमृत का

कुछ जीवन सा दे गया

आंखें तो खुली नहीं

पर खुश्क लबों को

  भिगो गया।

 लंबे समय की

खुश्की का  साथ

प्रतिदिन रहती बस

उस क्षण  की याद

 उसी बंदीगृह में  सुनी

 एक धीमी सी आवाज़

कुछ तो था उसमें  जो जगा

मुझमें नये जीवन का अहसास

फिर एक अविरल धारा बही

मैं झारोझार नहाया

हाथ कुछ खुलने लगे थे

पैर ज़मीं में धंसने लगे थे

एक स्पर्श से मैं  चौंक  गया

किसी  ने मेरे तन को छुआ

मैं मदमस्त  लहराने  लगा

मेरा मन गीत गाने लगा

गुनगुनाहट ने दी  शक्ति नयी

जोर लगाया तभी  आँखें खुली

चौंधियाई आँखें न

 सह पाईं यह वार

सामने  था अनोखा

  सुंदर सपनीला  संसार।

काश कि उस अँधेरे में

मैं यह समझ पाता

हर दुख के बाद

 सुख अवश्य आता।

सुख का प्रकाश

सबको है लुभाता।

पर सच यह है -

सुख- दुख का परचम

सिक्कों के दो

पहलू  सा लहराता।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार

13 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार!
    आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार जून 27, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. रचना को सम्मान देने के लिए हृदय से आभार मीना जी ।
      सादर ।

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  2. अंतर्मन को स्पर्श करती बेहतरीन रचना 👌
    सादर

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    1. रचना पसंद करने के लिए धन्यवाद अनीता जी ।
      सादर ।

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  3. सुन्दर ...बीज सुप्तावस्था में होता है हमारे अवचेतन मन की तरह . जाग्रति में ही हरअनुभूति होती है

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    1. आदरणीया,
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।रचना पर इस सुंदर अभिव्यक्ति के लिए आभार ।
      सादर ।

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  4. बहुत बहुत सुंदर प्रस्तुति। प्यारी रचना एक बीज जब अंकुर बन खिल गया।
    वाह

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  5. आदरणीय कुसुम जी ,
    सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।
    सादर ।

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  6. ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!

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