7607529597598172 हिंदी पल्लवी: अगस्त 2015

सोमवार, 31 अगस्त 2015

आदर


आर्यावर्त  की  आर्य  संस्कृति
विश्व में  पाती  सर्वोच्च  स्थान
ऋषि -  मुनि , रिश्ते  - नातों को
सदैव  देती  यथोचित  सम्मान
इतिहास के  स्वर्णिम अक्षरों को
उलट - पलट  कर जब  हम  झांकें
हुमायूं  को  राखी  पर  झुकते
धाय  माँ को  सम्मान देते  पाते
पिता  के एक  वचन  की  खातिर
पुत्र  व्यर्थ  करता  चौदह वर्ष
यहीं  शिवाजी  मातृ  इच्छा पर
भटकते  दिखते  वनों  वनों   पर
राजा  प्रजा के  आदरवश
प्रिय  पत्नी  त्याग  का  भार  उठाता
वहीं  पत्नी का अस्तित्व
फटी  भूमि  में  सहज  समाता
भक्ति  भी बिन आदर के
हृदय में  पाती कहाँ स्थान
राम कृष्ण  हो या मात पिता
जन-जन  का  हृदय  है  इसका  धाम 

शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

कर्म पथ का राही


कर्म  पथ  का राही हूँ मैं
डगर डगर  हूँ  नापता
मंदिर, मस्जिद,  चर्च  गुरूद्वारा
न, कर्म  स्थल  को  हूँ जानता
कांटे  बिछे  हों  राह  में  तो
हँस  के  चल  पड़ता  हूँ मैं
फूलों की  राह  चुनकर
कब  होता है  कार्य  सुफल
एक  राह  मंदिर की  है
दूजी कर्म  स्थान  की
चुुनूँगा  मैं  कौन  सी
इसमें  नहीं ,  जरा  संदेह
 कर्म  सम्पन्न  होते  ही
ईश्वर  मिल  जाते  वहीं
अलग  से  क्यों  राह  चुनना
जब  लक्ष्य है  एक  ही।
पल्लवी  गोयल