7607529597598172 हिंदी पल्लवी: 2018

रविवार, 8 जुलाई 2018

ओ बदरा ! तू जल बरसा रे!


ओ कारे कजरारे बदरा
पिघल पिघल धरती पर आ  रे!
अमिय सुधा सम थाती अपनी
धरती का वरदान बना दे!

औंधे मुँह पड़ी नील गागर में
लहर लहर  जल लहरा दे ।
वाष्प समुन्दर  बन गगन की शोभा
लघु बूंद बन ,जीवन नहला दे।

पल्लव पर गिर उषा काल में
कोमल रूप ले पल्लवी कहला रे!
सीप के मुख में बैठे बैठे
सीपज बन किरन चमका दे।

तरुणी के केश तले बंध
ढलक ढलक सौंदर्य बरसा दे।
माँ के भीतर  शरण तू पा ले
छलका पय अमृत बन जा रे।

ओ कारे! मतवाला बन कर
उमड़ घुमड़ तू शोर मचा रे !
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार






















शनिवार, 9 जून 2018

दहलीज



हर  दहलीज है कहानी
अपने इतिहास की
कहीं मर्यादा के हास की
कहीं गर्वीले  अट्टहास की
कुछ शर्मीली चूड़ियों की
कुछ हठीली रणभेरियों की
कई दपदपाते झूमरों की
कई अधजले कमरों की

हर  दहलीज बाँधती है
अपने संस्कार से
अपने निवासियों को
खुद वहीं पड़ी
रह कर भी
घूमती है मर्यादा
 बन ,आप  तक

घर की दहलीज
के अंदर बहू ने
जब घूँघट में मर्यादा
कंगना में संस्कार,
पायल में नियम  टाँके
वह  उसकी इज्जत बन गई।
जो विपरीत दिशा को बढ़ी
घर की रुसवाई  रच गई ।

दहलीज है सीमा
की वह परिभाषा
जिसके एक तरफ़
सीमा की रेखा
और दूसरी तरफ है
सीमा का अंत ।

पल्लवी गोयल


















शुक्रवार, 23 मार्च 2018

एहसासों का कारवाँ





१ 


दिल ने पुकारा 
उनको
पुकारता ही 
चला गया। 

मुख मौन था, 
आँखें झुकी हुई। 
 न देख कर भी 
देखता ही रह गया। 

जांचा !!परखा!!

जब आँखें और 
मुख मौन है ,
आवाज़  
कौन लगाता है?

एहसास हुआ !!

उनके आने की 
आहट से
रोम -रोम चिल्लाता है!! 




२  


मसूरी की वादियों में....

सबसे ऊँची पहाड़ी पर खड़ी,
 मैं देख रही थी, उस  घाटी को।
आकर्षण घाटी नहीं ,वहाँ  उड़ता 
एक सफ़ेद पक्षी था। 

जो अपने दोनों पंखों को फैलाए 
शानदार उड़ान के साथ,

 कभी ऊपर ऊंचाई को ,
और कभी गहराई को छूता ।

आकर्षण की तारतम्य स्थिति में,
 आँखों के उठते गिरते क्रम में ।

 अचानक ही एक एहसास हुआ कि...
मेरा पूरा अस्तित्व  हल्का हो गया।  
बगल में जा 'उसका 'जोड़ा बन गया !!


३ 



तेरी गोद  में सर रख,
 जो आँखें झपकाती हूँ। 
 अपने चारों तरफ शून्य ,
 खुद को तुझमें  पाती हूँ  माँ


४ 



ऐ मेरे परमात्मा !
 नहीं जानती, तू  
यहाँ  है या वहाँ। 
बड़ा सरल, सुगम है तू ,
सहज ही तुझे पाती हूँ 
मैं चाहती तुझे जहाँ।


५ 


वह क्षण 
जो दिमाग को छूता हुआ 
दिल में भी मुस्कुराए।
वह एहसास बन,
कण कण  में  गीत गाए। 


६ 


जो कलम उठाई ,अपने 
एहसासों को पढ़ने के लिए,
 बंद आँखों के सामने से 
पूरा कारवाँ गुज़र गया। 







पल्लवी गोयल 
  

रविवार, 18 मार्च 2018

उम्मीद ; सपना ; तकदीर

 
सूरज के तन से विलग हुआ एक कतरा था ,
सृजन की उम्मीद।


वहीं धुएँ सा पहली भाप का उड़ जाना था ,
रसधारा की उम्मीद।


नदी किनारे वह लिजलिजा,रेंगता पहला जीव था, 
जीवन की उम्मीद ।


नम सी  धरती  से उगता वह पहला कोंपल था,
हरियाली की उम्मीद ।


सूरज की किरणों का धरती पर पहुंचना ही है,
क्षुधा- पूर्ति की उम्मीद।


बूढ़े बाबा की गठरी में दबा वह सोने का हार है,
बेटी के ब्याह की उम्मीद।


कचरे के पहाड़ तले एक एक तिनका चुनता  बालक है,
बदलती तस्वीर की उम्मीद ।

स्लेट पर आड़ी तिरछी रेखा खींचते नन्हे- मुन्ने से है,
माँ-बाप को उम्मीद।

उम्मीदों पर टिका यह संसार बुनता नयी दुनिया,
अपने सपनों की।

उन सपनों को मशक्कत से जीकर इंसान बना लेता है,
अपनी तकदीर ।

पल्लवी गोयल 
चित्र गूगल से साभार 







शनिवार, 10 मार्च 2018

एक कार्य तुम्हें करना है , बस एक !


जिस कोख ने तेरा वज़न  उठाया
 खून पिलाया , परत चढ़ाया। 
वह बेशक ही एक 'महिला'है, 
इसे तू अपनी माँ कहता है।  


 बिल्ली बन तेरे पीछे दौड़ी। 
राखी बाँधी , बालाएं तोड़ी।  
वह भी एक  'ललना' है , 
जो तेरी प्यारी बहना है। 

 
चंद परिक्रमाओं  के साथ वह भूली
पिछला  संसार , पकड़ा तेरा हाथ। 
यह भी एक त्यागमयी 'कांता' है ,
इसे  तू अर्धांगिनी कहता है। 


शक्ति स्वरूपा ,  दुःख   हर्ता ,
दुष्ट संहारक , कृपा  निकेता। 
क्या यह एक 'अबला' रूप है ?
जिसे तू देवी माँ कहता है। 


कोई झुलाती ,कोई कथा सुनाती 
सबक सिखाती ,कोई खेल खिलाती। 
ये सब   भी तेरी संगी 'रमणी' ही  हैं। 
 तू बुआ ,दादी,चाची,सखी कहता है। 


विभिन्न पदों का धर्म निभाती ,
इन 'सुन्दरियों'  से तू घिरा हुआ है। 
धैर्य,  बल  ,त्याग,  प्रेम   का ,
जीवंत  रूप तेरे साथ सजा है। 


सभी 'वनिताओं' से तेरा संसार,
सुरम्य वन सा फला - फूला  है।
एक कार्य तुम्हें करना है , बस एक ! 
कदम नहीं ,इन्हें दिल में जगह देना है। 


पल्लवी गोयल 
चित्र साभार गूगल   





  


 





शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

यादों की परछाई


एक थी मेरी प्यारी बुआ
हरदम खुश -खुश   रहती थीं ।

झूम  झूमकर  गाती थी ।
गा -गा कर झूमती थीं।

जब भी उनके पास मैं जाती
खुश हो हो जाया करती थी ।

प्यारी सी वह बुआ मेरी
हरदम खुश ही रहती थीं।

जब  भी गाया करती वो
मैं भी गा- गा उठती थी।

झूमते सुर ताल में उनके
ताली मार के हँसती थी।

सखी थीं वह सबसे पहली
जबसे होश सँभाला था।

उनका तो हर एक अपना,
अंदाज़  बहुत निराला था।

आज भी उनको याद जब
 करती , मैं धीरे से हँस देती हूँ ।

उनकी यादों की परछाई
 दिल में मेरे बसती है ।

पल्लवी गोयल
प्यारी बुआ जी की याद में समर्पित
 (चित्र गूगल से साभार  )

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

मेरा साथी



 प्रश्न उठता एक 
संभावित उत्तर होते अनेक


 हर संभावना की पैठ है
अनंतकाल से  प्रश्न के पेट में ।

समय  उसे काल में  बाँध
ज़रूरत अनुसार खींच है लेता  ।

प्रश्न पूछता वह भुलावे में रहता
वह जन्मदाता है उसका।

उत्तर उसे हर बार बताता
प्रश्न तो बस  पूरक है उसका।

महाभारत थी काल का उत्तर
प्रश्न था द्रौपदी का प्रहार

उत्तर था माँ सीता का प्रयाण
प्रश्न था धोबी का पत्नी दुर्व्यवहार ।

रामायण है काव्यात्मक उत्तर,
प्रश्न था डाकू रत्नाकर ।

काल की पर्तों में छिपे हैैं उत्तर
प्रश्नों ने बस  साथी 
खोजा है। 



 पल्लवी गोयल 
(चित्र गूगल से साभार )





रविवार, 11 फ़रवरी 2018

जीवन नैया

हे ईश्वर ! जीवन के स्वामी ,
तू तो  है  अंतर्यामी ।

सुख- दुःख हो या राग रंग,
 मन चले निर्वेद संग।

क्लेश ,कष्ट या हो उमंग, 
मन रंगा हो ,तेरे ही रंग। 

राग -द्वेष जीवन का हिस्सा, 
कभी न हो ये मेरा किस्सा ।

शत्रु ,मित्र या स्वदेश ,परदेश 
दिखे सबमें, तेरा ही वेश ।

लालच ,कपट ,स्वार्थ जब खींचे,
तेरी अंगुली थामूं , अखियाँ मींचे ।

नफ़रत को प्यार से जीतूँ ,
ह्रदय घट को अमृत वर दे। 

मन से तेरी आस न छूटे ,
जब तक ये सांस न टूटे ।

परम अर्थ में घुल जाए सब, 
स्वार्थ का अंतिम कतरा तक ।


धर्म ,पीठ ,वेदी ,नदी 
जो न पाऊँ या न जाऊँ।

तेरी  छवि अपने मानस में ,
अन्तिम क्षण  तक आंकित पाऊँ ।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार