7607529597598172 हिंदी पल्लवी: जनवरी 2016

सोमवार, 18 जनवरी 2016

मैं किन्नर

पड़ा कदम जब  धरती पर पहला 
अन्याय मिला न  न्याय अभी तक 

 जन्म दिया था जिसने मुझको 
हुई  दुःख ,घृणा से भेंट वहीँ पर 

शुरू हुआ अलगाव का किस्सा 
माँ बाप  न  समाज का हिस्सा 

कब बीता बचपन,कब आई जवानी 
कब खाया पीया  ,कब जागा  सोया 

कब था हुलसा ,कब था बिलखा 
कब चोट लगी ,कब ताप चढ़ा 

कब मन मारा ,कब दर्द जगा 
नहीं पता था ,कुछ मुझको 


बताता कौन न माँ न बाप 
उपेक्षित सा पड़ा था आप 

ख़ुशी पराई , नाचा  मैं था 
की जग हँसाई , बजाता ताली था

तीखी मुस्कान लिए जग आँख नचाता 
उन इशारों पर मैं ठुमके लगाता 

क्या ठुमके मेरे मन के थे 
क्या हँसी  ने दिल पर दस्तक दी थी 

क्या नहीं थी ये एक रोटी की साज़िश 
दुखी मन पर सजी हंसी थी 

बुढ़ापे के द्वार खड़ा हूँ 
हो लाचार से लाचार  चला हूँ 

इंतज़ारआज भी है मुझको 
  केवल एक जोड़ी आँख का 

इंतज़ार आज भी है मुझको 
उन  आँखों के दो बूँद आँसुओं  का 





रविवार, 10 जनवरी 2016

साक्षरता

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जन जन में हो साक्षरता, 
ऐसा हो अभियान हमारा। 
नन्हें मुन्ने बच्चों को ,
देना होगा  ज़रा सहारा। 


बैसाखी लकड़ी नहीं है बच्चों ,
हक़ लेना ससम्मान तुम्हारा।  
भीख  दया नहीं  है ये ,
हक़ देना है कर्त्तव्य हमारा। 


हक़ जो  अपना छाँटोगे, 
वापस वही जग में बाँटोगे। 
बाँटा बांटी के इस खेल में ,
हो जाएगा रोशन जग सारा।


नई रोशनी और नई  चेतना, 
फैलाएगी जग में उजियारा।