7607529597598172 हिंदी पल्लवी: फ़रवरी 2018

शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

यादों की परछाई


एक थी मेरी प्यारी बुआ
हरदम खुश -खुश   रहती थीं ।

झूम  झूमकर  गाती थी ।
गा -गा कर झूमती थीं।

जब भी उनके पास मैं जाती
खुश हो हो जाया करती थी ।

प्यारी सी वह बुआ मेरी
हरदम खुश ही रहती थीं।

जब  भी गाया करती वो
मैं भी गा- गा उठती थी।

झूमते सुर ताल में उनके
ताली मार के हँसती थी।

सखी थीं वह सबसे पहली
जबसे होश सँभाला था।

उनका तो हर एक अपना,
अंदाज़  बहुत निराला था।

आज भी उनको याद जब
 करती , मैं धीरे से हँस देती हूँ ।

उनकी यादों की परछाई
 दिल में मेरे बसती है ।

पल्लवी गोयल
प्यारी बुआ जी की याद में समर्पित
 (चित्र गूगल से साभार  )

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

मेरा साथी



 प्रश्न उठता एक 
संभावित उत्तर होते अनेक


 हर संभावना की पैठ है
अनंतकाल से  प्रश्न के पेट में ।

समय  उसे काल में  बाँध
ज़रूरत अनुसार खींच है लेता  ।

प्रश्न पूछता वह भुलावे में रहता
वह जन्मदाता है उसका।

उत्तर उसे हर बार बताता
प्रश्न तो बस  पूरक है उसका।

महाभारत थी काल का उत्तर
प्रश्न था द्रौपदी का प्रहार

उत्तर था माँ सीता का प्रयाण
प्रश्न था धोबी का पत्नी दुर्व्यवहार ।

रामायण है काव्यात्मक उत्तर,
प्रश्न था डाकू रत्नाकर ।

काल की पर्तों में छिपे हैैं उत्तर
प्रश्नों ने बस  साथी 
खोजा है। 



 पल्लवी गोयल 
(चित्र गूगल से साभार )





रविवार, 11 फ़रवरी 2018

जीवन नैया

हे ईश्वर ! जीवन के स्वामी ,
तू तो  है  अंतर्यामी ।

सुख- दुःख हो या राग रंग,
 मन चले निर्वेद संग।

क्लेश ,कष्ट या हो उमंग, 
मन रंगा हो ,तेरे ही रंग। 

राग -द्वेष जीवन का हिस्सा, 
कभी न हो ये मेरा किस्सा ।

शत्रु ,मित्र या स्वदेश ,परदेश 
दिखे सबमें, तेरा ही वेश ।

लालच ,कपट ,स्वार्थ जब खींचे,
तेरी अंगुली थामूं , अखियाँ मींचे ।

नफ़रत को प्यार से जीतूँ ,
ह्रदय घट को अमृत वर दे। 

मन से तेरी आस न छूटे ,
जब तक ये सांस न टूटे ।

परम अर्थ में घुल जाए सब, 
स्वार्थ का अंतिम कतरा तक ।


धर्म ,पीठ ,वेदी ,नदी 
जो न पाऊँ या न जाऊँ।

तेरी  छवि अपने मानस में ,
अन्तिम क्षण  तक आंकित पाऊँ ।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार