7607529597598172 हिंदी पल्लवी: अक्तूबर 2015

शनिवार, 24 अक्टूबर 2015

माँ


माता  तो होती है देवी 
बच्चों के  लिए सबकुछ
 छोड़ देने वाली
बच्चों  को सबकुछ 
दे देने वाली 
उस देवी का दर्द 
पढ़ा  किसने ?
जब  सामने की थाली
सरकाई लाल को सामने
तो क्या उसका पेट
नहीं था ख़ाली ?
                      पल्लवी गोयल 


  

मंगलवार, 20 अक्टूबर 2015

हौसले की उड़ान


हौसले की  उड़ान  तू  छोटी  मत करना, 
यदि दुनिया कहे, 'वह ' रास्ता है  मुश्किल, 
फैलाना  छोटे  पंखों को , पूरी  ताकत से, 
उड़ना उस ओर, जहाँ  बाहें फैलाए, 
तैयार खड़ी है  मंजिल।

राह  भरी  होगी, ऊँचे  पत्थरों से  तो  क्या? 
वहीं  नज़र  आएगी, एक  छोटी सी  गली। 
बरसों  बरस  से  पड़ी  सूनी,  बेज़ार सी, 
जिसे  रचा है  उसने  सिर्फ तेरे लिए।

सैकड़ों  तूफ़ानों  से  आकाश  भरा  हो  तो  क्या? 
वहीं  एक पेड़ पर छोटा सा  कोटर  भी  होगा ज़रूर, 
जिसके  जन्म  से ही वहाँ  कोई नहीं  झांका,  
रचा है  विधाता ने सिर्फ  तेरे  हौसले  के लिए।

विश्वास  टूटे  जो  तेरा कभी ,अपने   पंखों से,
तो  बताना  उन्हें, तू  अंश है  उस  परमात्मा  का 
जो  पूरी  सृष्टि  का  निर्माणक, पालनहार है, 
रचा है उसने  पूरी  कायनात  को तेरी सहायता के लिए। 
                                                पल्लवी गोयल

शनिवार, 3 अक्टूबर 2015

साकार क्षण





स्कूल  बस  में  बैठे  नौनिहाल,  

उमर  कोई  आठ से  दस साल। 

उन  नजरों का  पीछा करते, 
जब  मेरी  नज़ऱें  पहुँची वहाँ... 

जहाँ  था  नीला  आसमां, 
नवप्रभात  की  फूटती  किरणें, 
किरणों से  आरेखित  बादलों के झुंड, 

सभी  मिलकर  अठखेलियाँ  

करते नज़र आते थे। 
बालकों  का  कौतूहल  जगाते  थे। 

वह बस आगे  बढ़ती  जाती  थी, 
उनकी नज़रें  ऊपर वहीं  जमी जाती  थी।

कौतूहल तो  मेरी  आँखों में  भी  था। 
उन  बालकों  की  आँखों  से  फूटती 
नवप्रभात की  किरणें  देखने  का, 
उनके  दिलों में उन  बादलों के  बुलबुले 
मुस्कान के  आरेखण में देखने  का, 
उनकी  इंगित  अंगुलियां, 
चमकते  चेहरे, 
खिलती मुस्कराहटें, 
दूर  आसमान  में  आकार  बना  रहे थे। 
और  मैं  इन  आकारों  को  देखकर, 
वह  क्षण  साकार कर रही थी। 
                                          पल्लवी गोयल