7607529597598172 हिंदी पल्लवी: मार्च 2018

शुक्रवार, 23 मार्च 2018

एहसासों का कारवाँ





१ 


दिल ने पुकारा 
उनको
पुकारता ही 
चला गया। 

मुख मौन था, 
आँखें झुकी हुई। 
 न देख कर भी 
देखता ही रह गया। 

जांचा !!परखा!!

जब आँखें और 
मुख मौन है ,
आवाज़  
कौन लगाता है?

एहसास हुआ !!

उनके आने की 
आहट से
रोम -रोम चिल्लाता है!! 




२  


मसूरी की वादियों में....

सबसे ऊँची पहाड़ी पर खड़ी,
 मैं देख रही थी, उस  घाटी को।
आकर्षण घाटी नहीं ,वहाँ  उड़ता 
एक सफ़ेद पक्षी था। 

जो अपने दोनों पंखों को फैलाए 
शानदार उड़ान के साथ,

 कभी ऊपर ऊंचाई को ,
और कभी गहराई को छूता ।

आकर्षण की तारतम्य स्थिति में,
 आँखों के उठते गिरते क्रम में ।

 अचानक ही एक एहसास हुआ कि...
मेरा पूरा अस्तित्व  हल्का हो गया।  
बगल में जा 'उसका 'जोड़ा बन गया !!


३ 



तेरी गोद  में सर रख,
 जो आँखें झपकाती हूँ। 
 अपने चारों तरफ शून्य ,
 खुद को तुझमें  पाती हूँ  माँ


४ 



ऐ मेरे परमात्मा !
 नहीं जानती, तू  
यहाँ  है या वहाँ। 
बड़ा सरल, सुगम है तू ,
सहज ही तुझे पाती हूँ 
मैं चाहती तुझे जहाँ।


५ 


वह क्षण 
जो दिमाग को छूता हुआ 
दिल में भी मुस्कुराए।
वह एहसास बन,
कण कण  में  गीत गाए। 


६ 


जो कलम उठाई ,अपने 
एहसासों को पढ़ने के लिए,
 बंद आँखों के सामने से 
पूरा कारवाँ गुज़र गया। 







पल्लवी गोयल 
  

रविवार, 18 मार्च 2018

उम्मीद ; सपना ; तकदीर

 
सूरज के तन से विलग हुआ एक कतरा था ,
सृजन की उम्मीद।


वहीं धुएँ सा पहली भाप का उड़ जाना था ,
रसधारा की उम्मीद।


नदी किनारे वह लिजलिजा,रेंगता पहला जीव था, 
जीवन की उम्मीद ।


नम सी  धरती  से उगता वह पहला कोंपल था,
हरियाली की उम्मीद ।


सूरज की किरणों का धरती पर पहुंचना ही है,
क्षुधा- पूर्ति की उम्मीद।


बूढ़े बाबा की गठरी में दबा वह सोने का हार है,
बेटी के ब्याह की उम्मीद।


कचरे के पहाड़ तले एक एक तिनका चुनता  बालक है,
बदलती तस्वीर की उम्मीद ।

स्लेट पर आड़ी तिरछी रेखा खींचते नन्हे- मुन्ने से है,
माँ-बाप को उम्मीद।

उम्मीदों पर टिका यह संसार बुनता नयी दुनिया,
अपने सपनों की।

उन सपनों को मशक्कत से जीकर इंसान बना लेता है,
अपनी तकदीर ।

पल्लवी गोयल 
चित्र गूगल से साभार 







शनिवार, 10 मार्च 2018

एक कार्य तुम्हें करना है , बस एक !


जिस कोख ने तेरा वज़न  उठाया
 खून पिलाया , परत चढ़ाया। 
वह बेशक ही एक 'महिला'है, 
इसे तू अपनी माँ कहता है।  


 बिल्ली बन तेरे पीछे दौड़ी। 
राखी बाँधी , बालाएं तोड़ी।  
वह भी एक  'ललना' है , 
जो तेरी प्यारी बहना है। 

 
चंद परिक्रमाओं  के साथ वह भूली
पिछला  संसार , पकड़ा तेरा हाथ। 
यह भी एक त्यागमयी 'कांता' है ,
इसे  तू अर्धांगिनी कहता है। 


शक्ति स्वरूपा ,  दुःख   हर्ता ,
दुष्ट संहारक , कृपा  निकेता। 
क्या यह एक 'अबला' रूप है ?
जिसे तू देवी माँ कहता है। 


कोई झुलाती ,कोई कथा सुनाती 
सबक सिखाती ,कोई खेल खिलाती। 
ये सब   भी तेरी संगी 'रमणी' ही  हैं। 
 तू बुआ ,दादी,चाची,सखी कहता है। 


विभिन्न पदों का धर्म निभाती ,
इन 'सुन्दरियों'  से तू घिरा हुआ है। 
धैर्य,  बल  ,त्याग,  प्रेम   का ,
जीवंत  रूप तेरे साथ सजा है। 


सभी 'वनिताओं' से तेरा संसार,
सुरम्य वन सा फला - फूला  है।
एक कार्य तुम्हें करना है , बस एक ! 
कदम नहीं ,इन्हें दिल में जगह देना है। 


पल्लवी गोयल 
चित्र साभार गूगल