हे हिंद वासियों !कश्मीरी बंधुओं!
तुम भारत का सिरमौर हो
सत्तर वर्षों की कड़ी तपस्या
के तुम जीवित धैर्य हो।
सीमा पर होने के
तुमने असंख्य वार सहे हैं
अदृश्य रेखा के इस पार सही
हमने भी सब दुख देखे हैं।
अब जो मिटी है वह अदृश्य अभी
उसको दिल से भी हटा देना
हो बिछड़े हुए तुम बरसों के
तुम भी बाहें फैला देना
बोए हुए इस पराएपन ने
बहुत से त्रास रचे हैं
न पराए तुम हो, ना पराए हम
हाथ मिलाकर है चलना
जो तलवार उठेगी तुमपर
ढाल होगा यह गात भी
भ्राता, बंधु अरे सहोदर
दुख पर मरहम हाथ भी।
हाथ से हाथ मिला कर चलना
लिखना है इतिहास अभी।
जंग हुई तो साथ रहेंगे
अमन हुआ तो सुख भोगेंगे
ईद ,दिवाली ,स्वतंत्र, गणतंत्र
त्योहार साथ मनाएंगे
राष्ट्र मान तिरंगे तले
राष्ट्रगान सब गाएंगे
संविधान है एक हमारा
अधिकार हमारे समान है
भारत की हर अंतिम सीमा
पर हम सबका अधिकार है!!!
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार
सारगर्भित रचना 👍
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार ,सुबोध जी ।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर आभार रितु जी ।
हटाएं
जवाब देंहटाएंजो तलवार उठेगी तुमपर
ढाल होगा यह गात भी
भ्राता, बंधु अरे सहोदर
दुख पर मरहम हाथ भी।
बहुत ही सुन्दर सार्थक एवं लाजवाब सृजन
प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार ।
हटाएंबहुत शानदार प्रस्तुति सखी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सखी।
हटाएंबहुत अच्छी अभिव्यक्ति । अभिनंदन ।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते, रचना पसंद करने के लिए आभार ।
हटाएंआदरणीय रवीन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंदेर से जवाब देने के लिए क्षमा चाहती हूँ ।रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार ।