हिंदी तुमसे प्यार क्यों इतना ,
सहज निभाना तुम्हें क्यो इतना।
जब भी प्रश्न किया खुद से
उत्तर तुरंत पाया तुमसे।
सपने की हर उड़ान में
सच्ची सखी तू हर इक में।
अंतर्मन जो करे पुकार
तू दौड़ी आती हर बार।
बाबा की बतकही में तू ही
माता की झिड़की में तू ही
कटु या भोले अपशब्दों की
मइया तू ही है इन की ।
मित्र चुहल का भार उठाती
मीत के खत का गाना गाती।
राखी का हर प्रण तुमसे
सहचरी कंगना में ,तू ही हँसे ।
सखी , मीत, भार्या, अनुजा
मात ,तात न कोई तेरे बिना।
अब समझी प्यार क्यों इतना
सहज निभाना तुम्हें क्यो इतना।
हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर हृदय से शुभकामनाएँ ।
बहुत सुन्दर-बहुत ही शानदार रचना…आगे भी आपकी ऐसी ही रचनाओं का इन्तजार रहेगा।
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