बुधवार, 6 मई 2015
गुरुवार, 30 अप्रैल 2015
पहाड़ और गिलहरी
काले पहाड़ और झबरीली गिलहरी में
बहस हुई एक बार।
श्रेष्ठ कौन है तुच्छ कौन,
गिलहरी या पहाड़।
पहाड़ बड़ा सा काला - काला,
गिलहरी छुद्र लाचार।
पूंछ झबरीली , सुंदर , सुकोमल,
तीन लहरें काली चमकदार।
गरज पहाड़ बोला उस छुद्र से,
तू क्या क्या कर सकती कार्य।
मैं बुलाता बारिश की बूंदें,
खग मृग करते मुझमें वास।
मुझसे बनते मकान अति सुन्दर,
मैं हूँ वह अनन्त अपार।
विहँस बहुत धीरे से बोली,
छुद्र उठाती विनय का भार।
भैया पहाड़! मैं चढ़ती इस पेड़ पर,
तू चढ़ दिखला दे एक बार।
स्थान:
Southern Asia
सोमवार, 27 अप्रैल 2015
प्रथम उड़ान
जब प्रथम उड़ान सजाते।
आसमान के सातों रंग,
चुरा आंखों में समाते।
चंदा की शीतलता मानो,
माथे पर थम जातीं।
सूरज की प्रथम किरण,
मुखमंडल पर फूटी आतीं।
कभी - कभी घनेरे बादल,
किरणों को ढक लेते।
पुनः हठीली चंचल किरणें,
चेहरे को जगमग करतीं।
गंतव्य पाते ही ये सगर्व,
यूँ गर्दन उचकाते।
मानो जीत लिया जग सारा
फूले नहीं समाते
पहाड़ और धरती
हरी हरी घास , पहाड़ी को यूं ढककर रहती।
मानो प्यारी धरती चुनरी के नीचे छिपकर बैठी।
प्रियतम पहाड़ दूर गर्वीले खड़े हुए,
बादल के कोहरे की पगड़ी से माथा ढके हुए,
कहते , तू ज़रा न चिंता कर ओ प्यारी!
डट के खड़ा हुआ हूँ , राह में अड़ा हुआ हूँ।
कंधे पर सवारी कर मेरे जो आएगा,
नितांत तेरा अपना ही तुझे पाएगा।
यदि अजनबी कोई चढ़ा जो इस सीने पर,
तुझपर बुरी नज़र डाले , अपने मन में।
दुःसाध्य, दुर्बोध, दुर्गम्य बन उसे रोकूँगा।
तेरी रक्षा में सदा तत्पर रहूँगा।
लोमड़ी और अंगूर
जंगल में थी प्यारी बेल,
सुंदर - सुंदर न्यारी बेल।
कुछ हरे, कुछ पके हुए से,
अनेक गुच्छे रहे थे खेल।
यकायक एक लोमड़ी,
घूम-फिर कर आई।
उन्हें देखकर अपने पास,
मन ही मन ललचाई।
उन्हें पाने को अपने हाथ,
एक लम्बी कूद लगाई।
अंगूर थे पहुंच के ऊपर,
पहुंच वहां न पाई।
किया प्रयास अनेक बार,
लगातार, बारंबार।
हर प्रयास में होती हार,
देख कहा मन ही मन-
"अँगूर खट्टे हैं।"
इंसान
जीवन है बहुत छोटा, करने हैं बहुत काम।
नाम? नाम को रहने दो अनाम।
परिचय है बहुत छोटा, नाम है अनाम,
उदासी ? इसमें उदासी का क्या काम।
दिल है बहुत छोटा उदासी का धाम,
प्यार ? हां प्यार से इसमें डालो जान।
समाज है बहुत छोटा, देना प्यार का पैगाम,
दुनिया ? दुनिया है ज़वाब प्यारे इंसान।
इंसान तू बहुत छोटा भीड़ है बेलगाम,
मित्रता , मित्रता को तू दे सम्मान।
मित्र.! तू है बहुत छोटा ! कहते हैं कुछ बेलगाम
हिम्मत ! हिम्मत से ही बनेगा काम।
शनिवार, 25 अप्रैल 2015
फूल का एक दिन
छोटी सी एक बगिया में,
एक सुंदर फूल खिला था।
धीमी तेज़ हवा के झोंके में
अलमस्त झूला झूल रहा था।
सूरज की पहली किरणों से
जब अंगड़ाई ले वह जगा
छोटे बड़े हर पल को,
वह मज़ा ले- लेकर जिया।
जब बारिश की चंचल बूंदें
तन को उसके छू- छूकर गईं।
चौंक - चौंक कर देख उधर,
कंपकंपाया, इठलाया था।
सारा दिन बीत गया था,
करते सारी अठखेलियां।
इंतजार था अब उसको,
अभी आती होंगी टोलियाँ।
सोनू, गोलू , रीना, सीमा की ,
लगेंगी हर्षोल्लास की बोलियां।
उन्हें देखकर वह चिल्लाया
आओ, झूमो, नाचो, गाओ,
खेलो, कूदो, मुझे दोस्त बना...
आह। अभी बात न होने पाई पूरी
अस्तित्व छोड़ चुका था जड़।
जो हाथ में था, उस नन्हे दोस्त के।
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