जंगल में थी प्यारी बेल,
सुंदर - सुंदर न्यारी बेल।
कुछ हरे, कुछ पके हुए से,
अनेक गुच्छे रहे थे खेल।
यकायक एक लोमड़ी,
घूम-फिर कर आई।
उन्हें देखकर अपने पास,
मन ही मन ललचाई।
उन्हें पाने को अपने हाथ,
एक लम्बी कूद लगाई।
अंगूर थे पहुंच के ऊपर,
पहुंच वहां न पाई।
किया प्रयास अनेक बार,
लगातार, बारंबार।
हर प्रयास में होती हार,
देख कहा मन ही मन-
"अँगूर खट्टे हैं।"
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