हे ईश्वर ! जीवन के स्वामी ,
तू तो है अंतर्यामी ।
सुख- दुःख हो या राग रंग,
मन चले निर्वेद संग।
क्लेश ,कष्ट या हो उमंग,
मन रंगा हो ,तेरे ही रंग।
राग -द्वेष जीवन का हिस्सा,
कभी न हो ये मेरा किस्सा ।
शत्रु ,मित्र या स्वदेश ,परदेश
दिखे सबमें, तेरा ही वेश ।
लालच ,कपट ,स्वार्थ जब खींचे,
तेरी अंगुली थामूं , अखियाँ मींचे ।
नफ़रत को प्यार से जीतूँ ,
ह्रदय घट को अमृत वर दे।
मन से तेरी आस न छूटे ,
जब तक ये सांस न टूटे ।
परम अर्थ में घुल जाए सब,
स्वार्थ का अंतिम कतरा तक ।
धर्म ,पीठ ,वेदी ,नदी
जो न पाऊँ या न जाऊँ।
तेरी छवि अपने मानस में ,
अन्तिम क्षण तक आंकित पाऊँ ।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार
तू तो है अंतर्यामी ।
सुख- दुःख हो या राग रंग,
मन चले निर्वेद संग।
क्लेश ,कष्ट या हो उमंग,
मन रंगा हो ,तेरे ही रंग।
राग -द्वेष जीवन का हिस्सा,
कभी न हो ये मेरा किस्सा ।
शत्रु ,मित्र या स्वदेश ,परदेश
दिखे सबमें, तेरा ही वेश ।
लालच ,कपट ,स्वार्थ जब खींचे,
तेरी अंगुली थामूं , अखियाँ मींचे ।
नफ़रत को प्यार से जीतूँ ,
ह्रदय घट को अमृत वर दे।
मन से तेरी आस न छूटे ,
जब तक ये सांस न टूटे ।
परम अर्थ में घुल जाए सब,
स्वार्थ का अंतिम कतरा तक ।
धर्म ,पीठ ,वेदी ,नदी
जो न पाऊँ या न जाऊँ।
तेरी छवि अपने मानस में ,
अन्तिम क्षण तक आंकित पाऊँ ।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार