हरी हरी घास , पहाड़ी को यूं ढककर रहती।
मानो प्यारी धरती चुनरी के नीचे छिपकर बैठी।
प्रियतम पहाड़ दूर गर्वीले खड़े हुए,
बादल के कोहरे की पगड़ी से माथा ढके हुए,
कहते , तू ज़रा न चिंता कर ओ प्यारी!
डट के खड़ा हुआ हूँ , राह में अड़ा हुआ हूँ।
कंधे पर सवारी कर मेरे जो आएगा,
नितांत तेरा अपना ही तुझे पाएगा।
यदि अजनबी कोई चढ़ा जो इस सीने पर,
तुझपर बुरी नज़र डाले , अपने मन में।
दुःसाध्य, दुर्बोध, दुर्गम्य बन उसे रोकूँगा।
तेरी रक्षा में सदा तत्पर रहूँगा।
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