हर दहलीज है कहानी
अपने इतिहास की
कहीं मर्यादा के हास की
कहीं गर्वीले अट्टहास की
कुछ शर्मीली चूड़ियों की
कुछ हठीली रणभेरियों की
कई दपदपाते झूमरों की
कई अधजले कमरों की
हर दहलीज बाँधती है
अपने संस्कार से
अपने निवासियों को
खुद वहीं पड़ी
रह कर भी
घूमती है मर्यादा
बन ,आप तक
घर की दहलीज
के अंदर बहू ने
जब घूँघट में मर्यादा
कंगना में संस्कार,
पायल में नियम टाँके
वह उसकी इज्जत बन गई।
जो विपरीत दिशा को बढ़ी
घर की रुसवाई रच गई ।
दहलीज है सीमा
की वह परिभाषा
जिसके एक तरफ़
सीमा की रेखा
और दूसरी तरफ है
सीमा का अंत ।
पल्लवी गोयल
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ११ जून २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
प्रिय श्वेता जी ,
हटाएंनमस्कार । रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभार ।कुछ प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण लम्बे समय तक ब्लॉग पर आना नहीं हो सका।।विशेष रूप से हमकदम के कदमों की चाप सुनने व कदमताल मिलाने से वंचित रही जिसे याद किया । धन्यवाद ।
सादर ।
प्रिय श्वेता जी ,
जवाब देंहटाएंनमस्कार । रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभार ।कुछ प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण लम्बे समय तक ब्लॉग पर आना नहीं हो सका।।विशेष रूप से हमकदम के कदमों की चाप सुनने व कदमताल मिलाने से वंचित रही जिसे याद किया । धन्यवाद ।
सादर ।
सटीक वर्णन उत्तम रचना पल्लवी जी शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है सुप्रिया जी । सुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
हटाएंसादर ।
वाह!!बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद शुभा जी ।
हटाएंसप्रेम ।
बहुत ही सुंदर आपकी रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी लेखन के लिए प्रेरित करती है ।स्नेह बनाए रखिएगा । सादर आभार ।
हटाएंवाह वाह , स्त्री के लिए दहलीज़ के क्या क्या अर्थ हैं वाकई आपने कविता में बड़े अच्छे से पिरोया है। दहलीज़ और स्त्री का नाता दांत और रोटी वाला होता है। इधर तो पूण्य उधर तो पाप।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
सादर
अपर्णा बाजपेयी
इतनी सुन्दर प्रोत्साहन से परिपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार अपर्णा जी ।
हटाएंसादर ।