जीवन के इस कठिन सफर में,
चलते जाना मुश्किल जग में।
राह में कई बवंडर होंगे ,
कई शांत से झोंके भी।
कई राह के रोड़े होंगे ,
कई मील के पत्थर भी।
कई संविधान होंगे हम पर,
कई नियम हल्के-फुल्के से।
सोच हमारी अपनी है,
क्या ले क्या ठुकरा दे हम।
हर एक बहती सरिता में,
न कोई समरस धारा है।
क्या बोएँ, उगाएँ ,काटे खाएँ
यह अधिकार हमारा है।
आओ इस जटिल गुत्थी को ,
खुद से खुद सुलझा ले हम।
जीवन को अपने सम ही
जी कर हम दिखला दे बस।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार