खून पिलाया , परत चढ़ाया।
वह बेशक ही एक 'महिला'है,
इसे तू अपनी माँ कहता है।
बिल्ली बन तेरे पीछे दौड़ी।
राखी बाँधी , बालाएं तोड़ी।
वह भी एक 'ललना' है ,
जो तेरी प्यारी बहना है।
चंद परिक्रमाओं के साथ वह भूली
पिछला संसार , पकड़ा तेरा हाथ।
यह भी एक त्यागमयी 'कांता' है ,
इसे तू अर्धांगिनी कहता है।
शक्ति स्वरूपा , दुःख हर्ता ,
दुष्ट संहारक , कृपा निकेता।
क्या यह एक 'अबला' रूप है ?
जिसे तू देवी माँ कहता है।
कोई झुलाती ,कोई कथा सुनाती
सबक सिखाती ,कोई खेल खिलाती।
ये सब भी तेरी संगी 'रमणी' ही हैं।
तू बुआ ,दादी,चाची,सखी कहता है।
विभिन्न पदों का धर्म निभाती ,
इन 'सुन्दरियों' से तू घिरा हुआ है।
धैर्य, बल ,त्याग, प्रेम का ,
जीवंत रूप तेरे साथ सजा है।
सभी 'वनिताओं' से तेरा संसार,
सुरम्य वन सा फला - फूला है।
एक कार्य तुम्हें करना है , बस एक !
कदम नहीं ,इन्हें दिल में जगह देना है।
पल्लवी गोयल
चित्र साभार गूगल