अभी क्या हम समाजवाद की
पगडंडी से नहीं गुजर रहे हैं
मोटर गाड़ी से उतरते सेठ और ड्राइवर
दोनों एक ही पंक्ति में खड़े हैं
धूप चढ़ी है सर पर तो क्या
डांडी मार्च के समय वह नहीं चढ़ी थी
देश को स्वतन्त्र करने की राह में
पूर्वजों ने सैकड़ों कुर्बानियां नहीं दी थीं
नहीं कहती यह ठीक है
लगातार आती कुछ अप्रिय ख़बरें
करुणा से चिल्लाते हो
कि एक नवजात शिशु मरा
आवाज तो तुम्हें ये लगाना था
नहीं दोस्त तुम्हें मरने नहीं देंगे
हम एक अरब देशवासी हैं
तुम्हारी रक्षा हम केवल
एक रुपये से करेंगे
कालाबाजारी और आतंकवाद की सड़ान्ध में
बजबजाते देश को बचाना इतना आसान भी नहीं
बरसों बरस की बिछाई गंदगी है
स्वच्छता अभियान की तैयारी
सडकों से उठा कर घरों में उतर आई है
गिरते को ऊपर उठाने के लिए
खुद भी झुकना पड़ता है
एक तो हिम्मत से झुकने निकल पड़ा है
निश्चय तुम्हारा है तुम्हें क्या करना है
क्या समझते हो की बदलाव है इतना आसान
बदलाव की श्रृंखला में सूरज को भी
अपनी किरणें लपेटना पड़ता है
चाँद को भी चाँदनी समेटना पड़ता है
तब कहीं आते है दिन और रात
इस अंधकार में दूर दूर तक
सोने की चिड़िया के
पंख भी नजर नहीं आते
उसे देखने के लिए देश को
एक बार पूरा पलटना होगा।
हमारे पूर्वज हमें स्वतन्त्र देश दे गए
आगे पूर्वजों का इतिहास हमें रचना है।