प्रश्न उठता एक
संभावित उत्तर होते अनेक ।
हर संभावना की पैठ है
अनंतकाल से प्रश्न के पेट में ।
समय उसे काल में बाँध
ज़रूरत अनुसार खींच है लेता ।
प्रश्न पूछता वह भुलावे में रहता
वह जन्मदाता है उसका।
उत्तर उसे हर बार बताता
प्रश्न तो बस पूरक है उसका।
महाभारत थी काल का उत्तर
प्रश्न था द्रौपदी का प्रहार
उत्तर था माँ सीता का प्रयाण
प्रश्न था धोबी का पत्नी दुर्व्यवहार ।
रामायण है काव्यात्मक उत्तर,
प्रश्न था डाकू रत्नाकर ।
काल की पर्तों में छिपे हैैं उत्तर
प्रश्नों ने बस साथी खोजा है।
पल्लवी गोयल
(चित्र गूगल से साभार )
बिल्कुल सही लिखा है आपने.....प्रश्न स्वम में ही प्रश्न है! इनके हल इनमें ही कहीं दफ्न हैं!
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए आभार व्यक्त करती हूँ आपका ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना पल्लवी मैम
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुधा मैम ।
जवाब देंहटाएंहर प्रश्न का उत्तर या उत्तर का प्रश्न ...
जवाब देंहटाएंढूँढे पे मिल
ही जाता है .।।
प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार ,दिगम्बर जी ।
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