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सोमवार, 25 जनवरी 2021

गणतंत्र दिवस


वीर शहीदों की कुर्बानी 
याद रहे चिरकाल तक।
तिरंगे की अमर कहानी 
गूँजे हर एक माथ तक।

आज राष्ट्रगान गूँजा है
भविष्य बस  यशगान हो।
तिरंगे की तीन छटा -सा
 समृद्धि ,प्रीति ,सम्मान हो।

 गणतंत्र की हर सुबह में  
एक संदेशा याद रहे।
कल भी पैदा होंगे भेदी 
वह निर्बल असहाय रहें।

शीश तना खड़ा हो ऊपर 
मानवता को झुक प्रणाम हो।
झंडे के समक्ष माथे पर हाथ
 हर सैनिक को सलाम हो।


देश व विदेश में बसे हर एक भारतवासी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

सोमवार, 14 सितंबर 2020

सखी हिंदी

 

हिंदी तुमसे प्यार क्यों इतना ,

सहज निभाना तुम्हें  क्यो इतना।


जब भी प्रश्न किया खुद से

उत्तर तुरंत पाया तुमसे।


सपने की हर उड़ान में  

 सच्ची सखी तू हर इक में।


अंतर्मन जो करे पुकार 

तू दौड़ी आती हर बार।


बाबा की बतकही में तू ही

माता की  झिड़की में तू ही


कटु या भोले अपशब्दों की 

मइया  तू ही  है इन की ।


मित्र चुहल का भार उठाती

मीत के खत का गाना गाती।


राखी का हर प्रण तुमसे 

सहचरी कंगना में ,तू ही हँसे ।


सखी ,  मीत, भार्या, अनुजा

मात ,तात  न  कोई तेरे बिना।


अब समझी  प्यार क्यों इतना 

सहज निभाना तुम्हें  क्यो इतना।


हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर  हृदय से शुभकामनाएँ ।

सोमवार, 18 मई 2020

कुछ नहीं ...बस..



ये कलम भी न बस
अंगद पाँव हो गई है।

न फटी बिवाई की 
गहराई में जाकर 
झाँकने को तैयार है।

न रेल की पटरी पर 
बिछी रोटियों को 
चुनने के आतुर है।

न मदिरालय की 
लंबी  पंक्तियाँ को
गिनने को बेकरार है।

न तरबतर  बेटे पर 
लदी माँ के आँसू 
लोकने का प्यार है।

न घेरे में  पादुका रखे
साथ बैठे की सोचती 
कि बुद्धि की मार है।

बस सारे दिन सुस्त सी
पड़ती है , पढ़ती है,
सुनती है ,कहती है।


मुझे  चलाना तब जब
इनमें से  तुम्हें एक भी
बदलने से  सरोकार  है।

पल्लवी गोयल 
चित्र गूगल से साभार

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2020

जीवन अपने सम..


जीवन के इस कठिन सफर में,
चलते जाना मुश्किल जग में।
राह में कई बवंडर होंगे ,
कई शांत से झोंके भी।
कई राह के रोड़े होंगे ,
कई मील के पत्थर भी।
कई संविधान होंगे हम पर,
कई नियम हल्के-फुल्के से।
सोच हमारी अपनी है,
 क्या ले क्या ठुकरा दे हम।
हर एक बहती सरिता में,
 न कोई समरस धारा है।
क्या बोएँ, उगाएँ ,काटे खाएँ
 यह अधिकार हमारा है।
आओ इस जटिल गुत्थी को ,
खुद से खुद सुलझा ले हम।
जीवन को अपने सम ही
 जी कर हम दिखला दे बस।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार 

गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

कृषक और सैनिक




1
कृषक महान मैं इस धरती का,
 मुझको हैं कुछ कर्ज चुकाने ।

प्रपात,सरिता,सरोवर में बहता, 
जल ले उसके चरण धुलाने ।

वायु प्रफुल्लित श्वसनिकाओं में
भरकर, हल-बैल से खेत सजाने।

जिस मिट्टी से बीज बना मैं,
उस पर हैं  कुछ बीज लगाने ।

जिस अन्न-जल ने सींचा मुझको ,
इस पर  है कुछ फसल उगानी।

2
बालक बन जन्म लिया
  अब सैनिक बन बैठा हूँ ।

 तेरी रक्षा के खातिर सीमा
पर, जलता ,ऐंठा बैठा हूँ ।

 शर  वक्ष  छलनी करे तुम्हारा
 धो बैठेगा वह  हाथ तभी ।

एक गोली आई इधर हमारे
तुरंत होंगे सर्वनाश तभी।

 तेरा नीर बहता मेरी रगों में
टपकेगा  वह नीर सा ही।

अगर किसी ने तीक्ष्ण नयन कर,
बढ़ाया कलुषित हाथ कभी ।

चाहे कृषक हो या वीर सिपाही
हूँ  मैं  भारतीय,बस संतान तेरी।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार 

शनिवार, 14 दिसंबर 2019

कहे का कहा


जब कहा हुआ
कहा जाएगा
और फिर
कहा जाएगा
और तब तक
के लिए छोड़
दिया जाएगा
कि फिर
कहा जाए।

सुनने  वाला
कोई नहीं
सब कहने वाले
कहे का मंज़र
बवंडर बनकर
लहराएगा
आसमान की ओर
उड़ता निकल
जाएगा।

फिर से कहने
वाला  वही क्रिया 
दोहराएगा
जो कहने वाला
था उसने  कहा...
सुना नहीं
जो सुनने वाला था
वह भी कह ही
रहा था।

कहने वाले के
कहे का कहा
उनके लिए
कहा ही रह
जाएगा।

@पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार

मंगलवार, 5 नवंबर 2019

एक और एक ग्यारह


वैसे तो
एक और एक
मिल कर
दो बनता है ।
पर दो
की कोई
कहाँ सुनता है
आवाज बड़ी हो
तो दूर तक
जाती है ...
वरना छोटी तो
बस मक्खी
भिनभिनाती है ।

बेहतर है
 एक से एक
को मिलाओ
जोड़ा ग्यारह का
बनाओ ।
संख्या दो जुड़ेगी
 केवल एक मिलेगी
पर ताकत
 उसमें
दस और एक
की होगी ।

मर्जी तुम्हारी है
फायदा नुकसान
तुम्हारा है
किसे छोड़ो
किसे अपनाओ
फैसला भी
तुम्हारा है
 पर
एक को एक से
 गले लगाओ ।
एक को एक से
दूर
कदापि न भगाओ।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार 

बुधवार, 30 अक्टूबर 2019

प्रजातंत्र के रक्षक हो तुम

प्रजातंत्र है जिम्मेदारी 
जन जन इसका है अधिकारी 
अधिकार जो तुमको है पाना
कुछ कर्म भी करते जाना 
समुद्र की गहरी हलचल में
हंस बनो इक मोती चुनो
चुनना तुम्हारा कर्म -धर्म है
तुम प्रजातंत्र के रक्षक हो।
पल्लवी गोयल 

सोमवार, 12 अगस्त 2019

हे हिंद वासियों! कश्मीर वासियों!


हे हिंद वासियों !कश्मीरी बंधुओं!
 तुम भारत का सिरमौर हो
सत्तर वर्षों की कड़ी तपस्या
 के तुम जीवित धैर्य  हो।

 सीमा पर होने के
तुमने असंख्य वार सहे हैं
अदृश्य रेखा के इस पार सही
हमने भी सब दुख देखे हैं।

अब जो मिटी है वह अदृश्य अभी
उसको दिल से भी हटा देना
हो बिछड़े हुए तुम बरसों के
तुम भी बाहें फैला देना

 बोए हुए इस पराएपन ने
बहुत से त्रास रचे हैं
न पराए तुम हो, ना पराए हम
हाथ मिलाकर है चलना

 जो तलवार उठेगी तुमपर
ढाल होगा यह गात भी
 भ्राता, बंधु अरे सहोदर
 दुख पर मरहम हाथ भी।

हाथ से हाथ मिला कर चलना
लिखना है इतिहास अभी।
जंग हुई तो साथ रहेंगे
अमन हुआ तो सुख  भोगेंगे

ईद ,दिवाली ,स्वतंत्र, गणतंत्र
त्योहार साथ मनाएंगे
राष्ट्र मान तिरंगे तले
राष्ट्रगान सब गाएंगे

 संविधान है एक हमारा
 अधिकार हमारे समान है
भारत की हर अंतिम सीमा
पर हम सबका अधिकार है!!!

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार 

रविवार, 11 अगस्त 2019

हमराही


ज़िंदगी  हो ,साथी हों
साथ  जीने की
बेताबी हो
 चाहे रास्ता हो
ना मंज़िल
चलने का जज़्बा
रास्ता  दिखाए
उस रास्ते  को ही
 मंजिल समझ
हर पल को
जी लीजिए
रास्ते के इस
सफ़र में
हमराही की सुगंध
का लुत्फ़ लीजिए ।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार