सबसे बड़ा रुपैया।
दौड़ के पीछे भागो मेरे,
हाथ कभी ना आऊँ तेरे।
लालच ,झूठ का मेरा संसार,
मृगतृष्णा का मैं जंजाल।
मैं आगे ,सब दुनिया पीछे ।
मैं नहीं ,सब रीते -रीते ।
महिमा से साथी बन जाते,
साथी भी दुश्मनी निभाते।
अजब गजब मेरा संसार,
चलो फिर मिलाते हाथ।
बढ़ाया हाथ ,तेरा मिला नहीं,
दो कदम बढ़ा, पर जुड़ा नहीं।
फिर कदम बढ़ा दो, हाथ सहित,
हाथ बढ़ा और पकड़ सही।
फिर कर एक कोशिश नयी,
कोशिश से हर बात बनी।
पास तेरे बस यही खड़ा हूं,
तेरे कर्मों से जुड़ा हुआ हूं।
कपट ,तृष्णा, छल ,धोखेबाजी,
कब्र खुदेगी यहीं तुम्हारी।
दया धर्म का जो तू व्यापारी,
तुझे जरूरत नहीं हमारी।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार