हर दहलीज है कहानी
अपने इतिहास की
कहीं मर्यादा के हास की
कहीं गर्वीले अट्टहास की
कुछ शर्मीली चूड़ियों की
कुछ हठीली रणभेरियों की
कई दपदपाते झूमरों की
कई अधजले कमरों की
हर दहलीज बाँधती है
अपने संस्कार से
अपने निवासियों को
खुद वहीं पड़ी
रह कर भी
घूमती है मर्यादा
बन ,आप तक
घर की दहलीज
के अंदर बहू ने
जब घूँघट में मर्यादा
कंगना में संस्कार,
पायल में नियम टाँके
वह उसकी इज्जत बन गई।
जो विपरीत दिशा को बढ़ी
घर की रुसवाई रच गई ।
दहलीज है सीमा
की वह परिभाषा
जिसके एक तरफ़
सीमा की रेखा
और दूसरी तरफ है
सीमा का अंत ।
पल्लवी गोयल