जब प्रथम उड़ान सजाते।
आसमान के सातों रंग,
चुरा आंखों में समाते।
चंदा की शीतलता मानो,
माथे पर थम जातीं।
सूरज की प्रथम किरण,
मुखमंडल पर फूटी आतीं।
कभी - कभी घनेरे बादल,
किरणों को ढक लेते।
पुनः हठीली चंचल किरणें,
चेहरे को जगमग करतीं।
गंतव्य पाते ही ये सगर्व,
यूँ गर्दन उचकाते।
मानो जीत लिया जग सारा
फूले नहीं समाते