अक्सर आपकी पहचान
आपके कार्यों से नहीं
' रहनुमाईन्दों' से होती है
लोगों की जुबान में
इनकी जुबान बसी होती है
' नज़रों ' को देखने के लिए
इनके नज़रिए की जरूरत होती है
और आपकी पहचान
इनकी सहूलियतों के लिए होती है
जो इन सहूलियतों का दाम चुकाया आपने
आप की 'पहचान' आपकी अपनी हो जाएगी
वर्ना यूँ ही एड़ियाँ घिसते - घिसते
आपकी पहचान अपनी से पराई
होती ही चली जाएगी
चित्र साभार गूगल(संवर्धित )