7607529597598172 हिंदी पल्लवी: श्रमजल

शनिवार, 6 जून 2015

श्रमजल

मेरी  महत्वाकांक्षा का  जन्म हुआ था 
वहाँ, उस  चोटी पर। 
आँख बंद करते  ही  पहुँचती  थी 
जहाँ, उसके सिरे पर। 
धरती  थी  बहुत  नीचे, 
आसमां  था  बहुत  पास। 
जगी  हुई थी,  सैकड़ों  प्यास, 
प्यास बुझाने के  थे  साधन  अनेक, 
जुटा  कर  हिम्मत , बढ़ाना  था  हाथ। 
उठाना  था  एक  ऐसा  गिलास, 
जिसमें  हो  पसीने की  मीठी सुवास। 
आकांक्षा  का घोल  घुला  हो  शर्करा  सा, 
श्रमजल में,  स्वेदकण में। 

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