स्कूल बस में बैठे नौनिहाल,
उमर कोई आठ से दस साल।
उन  नजरों का  पीछा करते, 
जब मेरी नज़ऱें पहुँची वहाँ...
जब मेरी नज़ऱें पहुँची वहाँ...
जहाँ  था  नीला  आसमां, 
नवप्रभात की फूटती किरणें,
किरणों से आरेखित बादलों के झुंड,
नवप्रभात की फूटती किरणें,
किरणों से आरेखित बादलों के झुंड,
सभी  मिलकर  अठखेलियाँ  
करते नज़र आते थे। 
बालकों का कौतूहल जगाते थे।
बालकों का कौतूहल जगाते थे।
वह बस आगे  बढ़ती  जाती  थी, 
उनकी नज़रें  ऊपर वहीं  जमी जाती  थी।
कौतूहल तो  मेरी  आँखों में  भी  था। 
उन  बालकों  की  आँखों  से  फूटती 
नवप्रभात की  किरणें  देखने  का, 
उनके  दिलों में उन  बादलों के  बुलबुले 
मुस्कान के  आरेखण में देखने  का, 
उनकी  इंगित  अंगुलियां, 
चमकते  चेहरे, 
खिलती मुस्कराहटें, 
दूर  आसमान  में  आकार  बना  रहे थे। 
और  मैं  इन  आकारों  को  देखकर, 
वह  क्षण  साकार कर रही थी। 
                                          पल्लवी गोयल 

 
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