धूम धूम जलती
रोशनी के तले
प्रकाशित थे
कुछ बुझते चेहरे
जगमगाती उजली
रोशनी के बीच
बुझते बुझते से
दो दीयों के जोड़े
खुशियाँ बिखराते,
हाथ नचाते ,
झूम कर गाते
समूहों के बीच थे
कुछ खोजते चेहरे
विज्ञापित साड़ियों ,
महकती खुशियों ,
विदेशी टाइयों
के बीच थी
कुछ लुगड़ियां
मुसी धोतियाँ
और निक्करें
छोटे सवार थे घोड़ी पर
उनपर सवार सेहरा था
छोटा कहार नंगे पाँव
उस पर सवार बक्सा था
सेहरा और चेहरा क्या
घोड़ी के पाँव तले उजियारा था
बक्से के ऊपर उजाला
तले भविष्य अँधेरा , धुंधला था
कुछ सवाल पूछता सा
लगता था ज़माने से
न शिकायत थी चेहरे
पर, न बल माथे पर
उम्र है दोनों की एक
पर क्या गुनाह मेरा था
पल्लवी गोयल
बेहद खूबसूरती व मर्मस्पर्शी रचना पल्लवी मैम
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुधा मैम
हटाएंपोस्ट को शामिल करने के लिए आपका आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और प्रभावी रचना की प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद महोदय।
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