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बुधवार, 6 मई 2015
सोमवार, 27 अप्रैल 2015
इंसान
जीवन है बहुत छोटा, करने हैं बहुत काम।
नाम? नाम को रहने दो अनाम।
परिचय है बहुत छोटा, नाम है अनाम,
उदासी ? इसमें उदासी का क्या काम।
दिल है बहुत छोटा उदासी का धाम,
प्यार ? हां प्यार से इसमें डालो जान।
समाज है बहुत छोटा, देना प्यार का पैगाम,
दुनिया ? दुनिया है ज़वाब प्यारे इंसान।
इंसान तू बहुत छोटा भीड़ है बेलगाम,
मित्रता , मित्रता को तू दे सम्मान।
मित्र.! तू है बहुत छोटा ! कहते हैं कुछ बेलगाम
हिम्मत ! हिम्मत से ही बनेगा काम।
शनिवार, 25 अप्रैल 2015
फूल का एक दिन
छोटी सी एक बगिया में,
एक सुंदर फूल खिला था।
धीमी तेज़ हवा के झोंके में
अलमस्त झूला झूल रहा था।
सूरज की पहली किरणों से
जब अंगड़ाई ले वह जगा
छोटे बड़े हर पल को,
वह मज़ा ले- लेकर जिया।
जब बारिश की चंचल बूंदें
तन को उसके छू- छूकर गईं।
चौंक - चौंक कर देख उधर,
कंपकंपाया, इठलाया था।
सारा दिन बीत गया था,
करते सारी अठखेलियां।
इंतजार था अब उसको,
अभी आती होंगी टोलियाँ।
सोनू, गोलू , रीना, सीमा की ,
लगेंगी हर्षोल्लास की बोलियां।
उन्हें देखकर वह चिल्लाया
आओ, झूमो, नाचो, गाओ,
खेलो, कूदो, मुझे दोस्त बना...
आह। अभी बात न होने पाई पूरी
अस्तित्व छोड़ चुका था जड़।
जो हाथ में था, उस नन्हे दोस्त के।
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