1
कृषक महान मैं इस धरती का,
मुझको हैं कुछ कर्ज चुकाने ।
प्रपात,सरिता,सरोवर में बहता,
जल ले उसके चरण धुलाने ।
वायु प्रफुल्लित श्वसनिकाओं में
भरकर, हल-बैल से खेत सजाने।
जिस मिट्टी से बीज बना मैं,
उस पर हैं कुछ बीज लगाने ।
जिस अन्न-जल ने सींचा मुझको ,
इस पर है कुछ फसल उगानी।
2
बालक बन जन्म लिया
अब सैनिक बन बैठा हूँ ।
तेरी रक्षा के खातिर सीमा
पर, जलता ,ऐंठा बैठा हूँ ।
शर वक्ष छलनी करे तुम्हारा
धो बैठेगा वह हाथ तभी ।
एक गोली आई इधर हमारे
तुरंत होंगे सर्वनाश तभी।
तेरा नीर बहता मेरी रगों में
टपकेगा वह नीर सा ही।
अगर किसी ने तीक्ष्ण नयन कर,
बढ़ाया कलुषित हाथ कभी ।
चाहे कृषक हो या वीर सिपाही
हूँ मैं भारतीय,बस संतान तेरी।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार