हौसले की  उड़ान  तू  छोटी  मत करना, 
यदि दुनिया कहे, 'वह ' रास्ता है  मुश्किल, 
फैलाना  छोटे  पंखों को , पूरी  ताकत से, 
उड़ना उस ओर, जहाँ  बाहें फैलाए, 
तैयार खड़ी है  मंजिल।
राह  भरी  होगी, ऊँचे  पत्थरों से  तो  क्या? 
वहीं  नज़र  आएगी, एक  छोटी सी  गली। 
बरसों  बरस  से  पड़ी  सूनी,  बेज़ार सी, 
जिसे  रचा है  उसने  सिर्फ तेरे लिए।
सैकड़ों  तूफ़ानों  से  आकाश  भरा  हो  तो  क्या? 
वहीं  एक पेड़ पर छोटा सा  कोटर  भी  होगा ज़रूर, 
जिसके  जन्म  से ही वहाँ  कोई नहीं  झांका,  
रचा है  विधाता ने सिर्फ  तेरे  हौसले  के लिए।
विश्वास  टूटे  जो  तेरा कभी ,अपने   पंखों से,
तो  बताना  उन्हें, तू  अंश है  उस  परमात्मा  का 
जो  पूरी  सृष्टि  का  निर्माणक, पालनहार है, 
रचा है उसने  पूरी  कायनात  को तेरी सहायता के लिए। 


अति सुन्दर।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद महोदय।
हटाएंअति सुन्दर।
जवाब देंहटाएंपल्लवी जी, बिल्कुल सही कहा आपने। हौसले अगर बुलंद हो तो आसमान को छू सकते है। बढिया प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआभार, ज्योति जी।
हटाएंआदरणीय,
जवाब देंहटाएंरचना को सम्मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
सादर ।
होंसलों की उड़ान सब कुछ आसान कर देती है ...
जवाब देंहटाएंऊर्जा देती है आपकी रचना ... लाजवाब ...
रचना पसंद करने के लिए बहुतबहुत धन्यवाद ।आपकी प्रतिक्रिया लेखन के लिए उर्जा देती है ।
हटाएंसादर ।