जीवन के इस कठिन सफर में,
चलते जाना मुश्किल जग में।
राह में कई बवंडर होंगे ,
कई शांत से झोंके भी।
कई राह के रोड़े होंगे ,
कई मील के पत्थर भी।
कई संविधान होंगे हम पर,
कई नियम हल्के-फुल्के से।
सोच हमारी अपनी है,
क्या ले क्या ठुकरा दे हम।
हर एक बहती सरिता में,
न कोई समरस धारा है।
क्या बोएँ, उगाएँ ,काटे खाएँ
यह अधिकार हमारा है।
आओ इस जटिल गुत्थी को ,
खुद से खुद सुलझा ले हम।
जीवन को अपने सम ही
जी कर हम दिखला दे बस।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 20 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीया ।
हटाएंसुंदर संदेश। अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंजी आभार मीना जी।
हटाएंहर एक बहती सरिता में,
जवाब देंहटाएंन कोई समरस धारा है।
क्या बोएँ, उगाएँ ,काटे खाएँ
यह अधिकार हमारा है।
वाह!!!!
लाजवाब सृजन
बहुत-बहुत धन्यवाद सुधा जी ।
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जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत ही सुन्दर प्रेरक लाजवाब सृजन।
धन्यवाद संजय जी।
हटाएंसादर ।
जी अवश्य ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन �� ��
जवाब देंहटाएंजीवन में आशा का संचार करती चिंतनपरक रचना। सरल शब्दावली में सरस संदेश देती अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंरचना पसंद करने के लिए सादर आभार आदरणीय।
हटाएंसुन्दर ब्लॉग और अच्छी कविता |
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है ।स्नेह बनाए रखें आदरणीय ।
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