7607529597598172 हिंदी पल्लवी: कृषक और सैनिक

गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

कृषक और सैनिक




1
कृषक महान मैं इस धरती का,
 मुझको हैं कुछ कर्ज चुकाने ।

प्रपात,सरिता,सरोवर में बहता, 
जल ले उसके चरण धुलाने ।

वायु प्रफुल्लित श्वसनिकाओं में
भरकर, हल-बैल से खेत सजाने।

जिस मिट्टी से बीज बना मैं,
उस पर हैं  कुछ बीज लगाने ।

जिस अन्न-जल ने सींचा मुझको ,
इस पर  है कुछ फसल उगानी।

2
बालक बन जन्म लिया
  अब सैनिक बन बैठा हूँ ।

 तेरी रक्षा के खातिर सीमा
पर, जलता ,ऐंठा बैठा हूँ ।

 शर  वक्ष  छलनी करे तुम्हारा
 धो बैठेगा वह  हाथ तभी ।

एक गोली आई इधर हमारे
तुरंत होंगे सर्वनाश तभी।

 तेरा नीर बहता मेरी रगों में
टपकेगा  वह नीर सा ही।

अगर किसी ने तीक्ष्ण नयन कर,
बढ़ाया कलुषित हाथ कभी ।

चाहे कृषक हो या वीर सिपाही
हूँ  मैं  भारतीय,बस संतान तेरी।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार 

12 टिप्‍पणियां:


  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२८ -१२-२०१९ ) को "परिवेश" (चर्चा अंक-३५६३) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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    उत्तर
    1. महोदया,रचना को चर्चामंच पर स्थान देने के लिए हृदय से आभार ।

      हटाएं
  2. चाहे कृषक हो या वीर सिपाही
    हूँ  मैं  भारतीय,बस संतान तेरी।

    अति सुंदर सृजन ,सादर

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  3. चाहे कृषक हो या वीर सिपाही
    हूँ मैं भारतीय,बस संतान तेरी।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, पल्लवी दी।

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    उत्तर
    1. प्रिय बहन ज्योति जी,
      रचना पसंद करने के लिए धन्यवाद ।

      हटाएं
  4. बहुत सुंदर सृजन पल्लवी जी सार्थक रचना।

    जवाब देंहटाएं
  5. कृषक, बालक, वीर सिपाही ... हर कोई जो देश के काम आता है वो प्रिय होता है ... बहत भावपूर्ण रचना ...

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  6. वाह!!!
    जय जवान जय किसान
    बहुत ही सुन्दर रचना है आपकी
    बहुत बहि बधाई एवं शुभकामनाएं

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