प्रशंसा है व्यक्ति की सबसे बड़ी कमज़ोरी,
इसपर विजय पाना है बहुत ज़रूरी।
नज़रें खोजतीं हैं एक ऐसी नज़र,
जो नज़रों में ऊँचा उठा सके।
पर ये खोजतीं नज़रें,
नज़र नहीं आतीं,
नज़रों से ज़रा सा नीचे,
आत्मा के सामने नज़रें झुकाए।
हम क्यों नहीं आत्मा को अपनी नज़र बनाते ,
खूबियों और कमियों का पलड़ा उनसे तुलवाते।