7607529597598172 हिंदी पल्लवी: यादों की परछाई

शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

यादों की परछाई


एक थी मेरी प्यारी बुआ
हरदम खुश -खुश   रहती थीं ।

झूम  झूमकर  गाती थी ।
गा -गा कर झूमती थीं।

जब भी उनके पास मैं जाती
खुश हो हो जाया करती थी ।

प्यारी सी वह बुआ मेरी
हरदम खुश ही रहती थीं।

जब  भी गाया करती वो
मैं भी गा- गा उठती थी।

झूमते सुर ताल में उनके
ताली मार के हँसती थी।

सखी थीं वह सबसे पहली
जबसे होश सँभाला था।

उनका तो हर एक अपना,
अंदाज़  बहुत निराला था।

आज भी उनको याद जब
 करती , मैं धीरे से हँस देती हूँ ।

उनकी यादों की परछाई
 दिल में मेरे बसती है ।

पल्लवी गोयल
प्यारी बुआ जी की याद में समर्पित
 (चित्र गूगल से साभार  )

13 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद सुंदर। बुआ का प्यार, लाड, दुलार कौन भूल सकता है।
    पल्लवी जी शुभकामनाएँ।

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  2. प्रतिक्रिया के लिए हृदय से धन्यवाद लोकेश जी।

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  3. कोई रिश्ता कई बार सिल के क़रीब हो जाता है जो कहीं नहि जाता ... सुंदर भावपूर्ण रचना है ...

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    1. सच कह रहे हैं दिगम्बर जी । हर एक रिश्ते का अहसास तो वास्तव मे नायाब होता है पर कुछेक रिश्ते हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा बनकर हमारे साथ ही ठहर जाते हैं । प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।

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  4. रचना को सम्मान देने के लिए हृदय से आभार ।
    सादर ।

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