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भारत देश के इतिहासकार कुछ व्यक्तित्वों को अपनी पुस्तकों में प्रमुखता से स्थान न दे पाए । उन व्यक्तित्वों में से एक प्रमुख व्यक्तित्व है,सरदार वल्लभभाई पटेल का ।जो भारत की एकता और अखंडता को , हर एक भारतीय के अधिकार को , भारत को विश्व में एक शक्तिशाली संवैधानिक राष्ट्र के रूप में स्थापित कर गए। अपने नाम और पद से अधिक उन्होंने राष्ट्रीय एकता को महत्व दिया ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ 31 अक्टूबर उनकी जयंती के उपलक्ष्य में घोषित है। उनको श्रद्धांजलि देते हुए यह लेख प्रस्तुत है।
सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 18 75 नडियाद गुजरात में हुआ ।पिता झावेर भाई माँ लाडबादेवी थीं। प्रारंभिक शिक्षा करमसद और नडियाद में की ।कानूनी पढ़ाई स्व-अध्ययन से की ।1910 में लंदन के मिडिल टेंपल से केवल 30 महीने में ‘बैरिस्टर एट लाॅ’की पढ़ाई पूरी कर कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। अहमदाबाद के सफल वकील के रूप में पहचाने जाने लगे। बाद में स्वतंत्रता सेनानी व रियासतों के विलय में अग्रणी भूमिका निभाई। उन्हें बारडोली महिलाओं द्वारा ‘सरदार’, विलय कर्ता के रूप में ‘लौह पुरुष’ तथा ‘भारत के बिस्मार्क’ के रूप में जाना जाता है। उनकी मृत्यु 15 दिसंबर 1950 में हुई।
भारत में उनके अभूतपूर्व योगदान
1-भारतीय राष्ट्रीय एकता शिल्पकार-
1947 की आजादी के समय भारत में 565 से अधिक देशी रियासतें थीं ,जिन्हें सरदार पटेल ने ‘एक भारत:श्रेष्ठ भारत’ के दृष्टिकोण को मूलाधार मानकर ,शक्ति को नीति ,दूरदर्शिता और आवश्यकता अनुसार दबाव का उपयोग करके इनमें से लगभग सभी रियासतों को भारतीय संघ में विलय पत्र (Instrument of Accession)के माध्यम से विलय करने का असंभव कार्य संभव किया ।भारत के शिल्पकार ने भारत के लौह पुरुष की उपाधि देना सर्वथा उचित था क्योंकि उनके इसी कृत्य ने भारत के संवैधानिक ढांचे को लोहे जैसी मजबूती प्रदान की।जूनागढ़ ,हैदराबाद ,जम्मू और कश्मीर विलय की चुनौतियों को उन्होंने असाधारण राजनीतिक कूटनीति से हल किया ।जूनागढ़ का विलय नवाब के पाकिस्तान भागने के बाद 99% जनमत संग्रह से ,हैदराबाद का ‘पोलो ऑपरेशन’ से तथा जम्मू और कश्मीर का कव्बाइलियों से सुरक्षा की सैन्य सहायता देकर किया ।
2-अखिल भारतीय सेवाओं में योगदान -
भारतीय सिविल सेवाओं के जनक के रूप में पहचाने जाने वाले सरदार पटेल ने ब्रिटिश युग की इंडियन सिविल सर्विस (ICS) को बदलकर इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस(IAS) में तथा पुलिस सेवा को भी पुनर्गठित करके उन्हें ‘स्टील फ्रेम’ कहा ।उन्होंने संघ और राज्यों के बीच में समन्वय स्थापित करने के लिए ऐसी अखिल भारतीय सेवा की परिकल्पना की जिसके अधिकारी केंद्र सरकार द्वारा चुने राज्यों में काम करें। इस फ्रेम को बनाने के लिए उनका तर्क तथा देश को तोड़ने की कोशिश का मुकाबला करने और राज्यों के कल्याण संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निष्पक्ष नौकरशाही (Bureaucracy)अनिवार्य है
3- बारडोली आंदोलन -
ब्रिटिश मुंबई प्रेसिडेंसी सरकार द्वारा भू राजस्व की दरों में अन्याय पूर्ण वृद्धि की गई,जो 22% और कुछ स्थानों पर 30% तक थी। 1925 की बाढ़ और अकाल ने किसानों को बदहाल कर रखा था। इस अन्याय पूर्ण राजस्व वृद्धि ने उनकी कमर ही तोड़ दी थी ।1928 में सरदार पटेल के नेतृत्व में गुजरात में बारडोली के किसानों से सत्याग्रह आंदोलन किया जिसमें कर देने से इनकार किया। सरकार द्वारा भूमि पशु आदि जब्त किए जाने लगे। किसान स्थिर रहे। महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। अंततः ‘मैक्सवेल बूमफील्ड आयोग’ की जाँच के परिणामस्वरुप लगान वृद्धि कम करके 6.03 प्रतिशत हुई ।यह सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में किसानों के संघर्षों की बड़ी जीत थी ,जिसने यह साबित किया कि अहिंसक तरीके से भी औपनिवेशिक सरकार की नीतियों का सफलतापूर्वक विरोध किया जा सकता है ।
4-भारत के उच्च उच्चतम पद का बलिदान-
1946 में कांग्रेस अध्यक्ष (जो अंतरिम सरकार का प्रमुख यानी प्रधानमंत्री बनने वाला था) के चुनाव के लिए 15 में से 12 प्रांतीय कांग्रेस समितियों द्वारा सरदार पटेल का नाम प्रस्तावित किया गया था। गांधी जी के प्रति सम्मान,जवाहरलाल नेहरू को इस पद को देने की इच्छा तथा राष्ट्रीय एकता की जरूरत (यदि जवाहरलाल नेहरू को नेतृत्व नहीं दिया,कांग्रेस का विभाजन हो सकता है) को समझते हुए उन्होंने इस दावेदारी से अपना नाम वापस देते हुए पद का बलिदान किया ।उप प्रधानमंत्री और पहले रक्षा मंत्री के रूप में देशी रियासतों के एकीकरण में अपनी पूरी ऊर्जा डाल दी।
राष्ट्रीय सम्मान
1-भारत रत्न (मरणोपरांत )1991
2-राष्ट्रीय एकता दिवस- घोषणा वर्ष 2014
3-स्टेचू ऑफ़ यूनिटी -उद्घाटन 2018 -केवड़िया नर्मदा नदी के तट गुजरात पर दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा के रूप में स्थापित भौतिक स्मारक ,जिसकी ऊँचाई 182 मीटर 597 फीट है। यह इनकी लौह संकल्प शक्ति तथा देश के एकीकरण के प्रति उनकी समर्पण का प्रतीक है।
भारत के जिस लौह पुरुष ने भारत के संविधान को लोहे जैसे शक्ति प्रदान की है। एकीकरण द्वारा इसे अखंडता प्रदान की है, उस व्यक्तित्व को देश उनकी जयंती के शुभ अवसर पर कृतज्ञतापूर्वक नमन करता है।
लेख रचनाकार
पल्लवी गोयल
(चित्र साभार गूगल)

